अक़ीदा
इस्लाम अक़ीदा और शरीअत (धर्म विश्वास तथा क़ानून) का नाम है। और अक़ीदा वह आधार है जिस पर धर्म आधारित है। और इस्लामी अक़ीदा एक स्पष्ट और आसान अक़ीदा है, जो शुद्ध विवेक और ध्वनि प्रवृत्ति के अनुकूल (जो सहीह अक़्ल और सलीम फ़ित्रत के अनुसार) है।
ज़ैली विषय समूह
शहादतैन (दो गवाही)
इस्लाम ने कलिमा तौहीद ला इलाह इल्लल्लाह को सब से ऊँचे मक़ाम और महान मर्यादा व रुत्बे से नवाज़ा है। पस यह मुस्लिम का सब से पहला फर्ज (कर्तव्य) है, अतः जो शख्स इस्लाम में प्रवेश करना चाहे उस पर जरूरी है कि वह इस का एतिकाद (आस्था) रखते हुए इसे अपनी जुबान से उच्चारण (तलफ्फुज) करे। और जो व्यक्ति ईमान व यकीन के साथ इसे पढ़ेगा तो यह उस के लिए जहन्नम से नजात का ज़रीया होगा। जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “बेशक अल्लाह ने जहन्नम की आग पर उस व्यक्ति को हराम कर दिया जिस ने अल्लाह की रिज़ा के लिए कहाः ला इलाह इल्लल्लाह।” {बुख़ारीः 415}
ईमान
तमाम अम्बिया अलैहिमुस्सलाम का अपनी अपनी क़ौमों के नाम एक ही (मूख्य) पैग़ाम रहा, और वह यह कि वह उस अकेले अल्लाह की इबादत करें जिस का कोई शरीक व साझी नहीं, और उस के अतिरिक्त जिन की पूजा की जाती है उन के साथ कुफ्र करें। और यही है कलिमा तौहीद (ला इलाह इल्लल्लाह) के अर्थ की हक़ीक़त और वास्तविकता, तथा यही वह कलिमा है जिस के ज़रीया व्यक्ति अल्लाह के दीन में दाखिल होता है।
इबादत
महब्बत व ताज़ीम और विनय नम्रता के साथ पूर्ण आज्ञाकारिता इबादत कहलाता है। और यह बंदों पर अल्लाह का अधिकार है, जो कि दूसरों को छोड़ कर सिर्फ़ उसी के लिए ख़ास है। और यह हर उस चीज़ को शामिल है जिसे अल्लाह तआला पसंद फ़रमाता है तथा उस से राज़ी और ख़ुश हौता है उन बातों और कर्मों में से जिन का उस ने हुक्म दिया है या उन की तरफ़ रग़बत दिलाई है, चाहे वह प्रकाश्य कर्मों (ज़ाहिरी आमाल) -जैसेः नमाज़, ज़कात और हज्ज आदि- में से हूँ या अप्रकाश्य कर्मों (बातिनी आमाल) -जैसेः दिल से अल्लाह को याद करना, उस से ख़ौफ़ खाना (डरना), उस पर तवक्कुल (भरोसा) करना और उस से मदद मांगना वग़ैरा- में से हूँ।