इबादत
महब्बत व ताज़ीम और विनय नम्रता के साथ पूर्ण आज्ञाकारिता इबादत कहलाता है। और यह बंदों पर अल्लाह का अधिकार है, जो कि दूसरों को छोड़ कर सिर्फ़ उसी के लिए ख़ास है। और यह हर उस चीज़ को शामिल है जिसे अल्लाह तआला पसंद फ़रमाता है तथा उस से राज़ी और ख़ुश हौता है उन बातों और कर्मों में से जिन का उस ने हुक्म दिया है या उन की तरफ़ रग़बत दिलाई है, चाहे वह प्रकाश्य कर्मों (ज़ाहिरी आमाल) -जैसेः नमाज़, ज़कात और हज्ज आदि- में से हूँ या अप्रकाश्य कर्मों (बातिनी आमाल) -जैसेः दिल से अल्लाह को याद करना, उस से ख़ौफ़ खाना (डरना), उस पर तवक्कुल (भरोसा) करना और उस से मदद मांगना वग़ैरा- में से हूँ।