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पाठ रमज़ान का रोज़ा
अल्लाह तआला ने मुसलमानों पर साल में एक महीने का रोज़ा यानी रमज़ानुल मुबारक का उपवास फ़र्ज़ किया है, और इसे इस्लाम के अर्कान में से चौथा रुक्न और इस की अज़ीम इमारतों में से बनाया है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः {يََا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُون} (البقرة: 183). “ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़े रखना फ़र्ज़ किया गया जिस तरह तुम से पहले लोगों पर फ़र्ज़ किया गया था, ताकि तुम तक़्वा इख़्तियार करो।” {अलबक़राः 183}
इस्लाम में सियाम का अर्थः सुब्हे सादिक़ -जो कि फ़ज्र की नमाज़ के प्रवेश का समय है- के उदय होने से ले कर सूरज डूबने तक -जो कि मग़रिब की नमाज़ के प्रवेश का समय है- खाने, पीने, संभोग और रोज़ा तोड़ने वाली सारी चीजों से परहेज़ कर के अल्लाह की इबादत करना।
माहे रमज़ान की फ़ज़ीलत
रमजान इस्लामी कैलेंडर में चंद्र महीनों का नौवां महीना है, और यह साल का सब से अफ़ज़ल महीना है। अल्लाह तआला ने इसे अन्य महीनों के मुक़ाबिले में कई गुणों तथा फ़ज़ीलतों के साथ मख़सूस फ़रमाया है, और उन गुणों तथा फ़ज़ीलतों में से हैं:
अल्लाह तआला ने फ़रमायाः “माहे रमज़ान वह है जिस में क़ुरआन उतारा गया जो लोगों को हिदायत करने वाला है और जिस में हिदायत की और हक़ व बातिल की तमय्युज़ की निशानियाँ हैं, पस तुम में से जो शख़्स इस महीने को पाये उसे रोज़ा रखना चाहिये।” {अलबक़राः 185}
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जब रमज़ान आता है तो जन्नत के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं, और जहन्नम के दरवाज़े बंद कर दिये जाते हैं, और शैतान शृंखलावद्ध कर (ज़ंजीरों में जकड़) दिये जाते हैं।” {बुख़ारीः 3277, मुस्लिमः 1079} पस अल्लाह तआला ने इसे अपने बंदों के लिए तैयार किया है कि वह आज्ञाकारिता के कार्य कर के और घिनावने कामों को त्याग कर के उस की ओर फिरे।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जिस शख़्स ने ईमान के साथ सवाब की नीयत से (अल्लाह की रिज़ा के लिए) रमज़ान के रोज़े रखे तो उस के पहले के गुनाह माफ़ कर दिये जाते हैं।” {बुख़ारीः 2104, मुस्लिमः 760} और फ़रमायाः “जिस शख़्स ने ईमान के साथ सवाब की नीयत से (अल्लाह की रिज़ा के लिए) रमज़ान के क़ियाम किये तो उस के पहले के गुनाह माफ़ कर दिये जाते हैं।” {बुख़ारीः 2009, मुस्लिमः 759}
यह वह रात है जिस के बारे में अल्लाह ने अपनी पुस्तक क़ुरआन में बताया है कि उस में नेक अमल एक हजार महीनों के अमल से बेहतर है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (لَيْلَةُ الْقَدْرِ خَيْرٌ مِنْ أَلْفِ شَهْرٍ) (القدر: 3) “शबे क़दर हज़ार महीनों से बेहतर है।” {अलक़द्रः 3} और यह रात रमज़ान के आख़िरी दस रातों में से कोई एक है, जो अनिर्धारित है (फ़िक्स नहीं है)। जो व्यक्ति उस रात को ईमान के साथ सवाब की नीयत से क़ियाम करेगा, उस के पहले के गुनाह माफ़ कर दिये जायेंगे।
रोज़े की फ़ज़ीलत
शरीअत में रोज़े की बहुत सारी फ़ज़ीलतें आई हैं, उन में से चंद यह हैंः
1- गुनाहों की माफ़ी
जो शख़्स अल्लाह पर ईमान के साथ, उस की आज्ञाओं का पालन करते हुये, रमज़ान की फ़ज़ीलत में वारिद (वर्णित) बातों की तस्दीक़ (विश्वास) करते हुये और अल्लाह के पास अज्र व सवाब की उम्मीद रखते हुये इस महीने के रोज़े रखे, तो उस के पिछले गुनाह माफ़ कर दिये जाते हैं। जैसा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जिस शख़्स ने ईमान के साथ और सवाब की नीयत से रमज़ान के रोज़े रखे तो उस के पिछले गुनाह माफ़ कर दिये जाते हैं।” {बुख़ारीः 2104, मुस्लिमः 760}
जैसा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “रोज़ेदार के लिए दो ख़ुशियाँ हैंः एक ख़ुशी उस के इफ़्तार के वक़्त और एक ख़ुशी अपने रब की मुलाक़ात के वक़्त।” {बुख़ारीः 1904, मुस्लिमः 1151}
3- जन्नत में एक दरवाज़ा है जिस का नाम रैयान है, उस से सिर्फ़ रोज़ेदार ही दाख़िल हूँगे
जैसा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जन्नत में एक दरवाज़ा है जिसे रैयान कहा जाता है, क़ियामत वाले दिन उस से सिर्फ़ रोज़ेदार ही दाख़िल हूँगे। उन के सिवा उस से कोई दाख़िल नहीं होगा। कहा जायेगाः रोज़ेदार कहाँ हैं? तो वह खड़े हूंगे (और उस से दाख़िल हो जायेंगे)। उन के सिवा उस से कोई और दाख़िल नहीं होगा। जब वह दाख़िल हो जायेंगे तो उस को बंद कर दिया जायेगा, चुनांचि कोई और उस से दाख़िल नहीं होगा।” {बुख़ारीः 1896, मुस्लिमः 1152}
4- अल्लाह तआला ने रोज़े के प्रतिफल और उस के प्रतिदान की निस्बत अपनी तरफ़ की है
और जिस का प्रतिदान व प्रतिफल महान दयालु और अज़ीम करीम व उदार ज़ात के पास हो तो उसे उस चीज़ पर ख़ुश होना चाहिये जो अल्लाह तआला ने उस के लिए तैयार कर रखी है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हदीसे क़ुदसी में -जो वह अपने रब से रिवायत करते हैं- फ़रमायाः “बनी आदम का हर अमल उस के लिए है, सिवाय रोज़े के कि वह सिर्फ़ मेरे लिए है और मैं ही उस का बदला दूँगा।” {बुख़ारीः 1904, मुस्लिमः 1151}
रोज़े की हिक्मत
अल्लाह तआला ने बहुत सारी हिक्मतों के पेशे नज़र तथा विभिन्न दीनी व दुनियावी फ़वाइद की ख़ातिर रोज़े को फ़र्ज़ क़रार दिया है। उन में सेः
और वह इस लिए कि रोज़ा एक ऐसी इबादत है जिस के ज़रीया बंदा अपने महबूब व प्रिय को त्याग कर, अपनी अनुमेय इच्छाओं (जायज़ ख़ाहिशात) को दबा कर, अपने रब के आदेश के अनुपालन में और उस के निषेध से बच कर अल्लाह तआला की क़ुर्बत हासिल करता है।
क्योंकि रोज़ेदार का अल्लाह तआला के आज्ञा के अनुपालन में अनुमेय (जायज़) चीजों से परहेज करना, उसे अवज्ञा और पापों से अपनी इच्छाओं को रोकने में अधिक सक्षम बनाता है।
और ऐसा इस लिए है कि रोज़ा में अभाव और भूख बरदाश्त करने की आज़माइश है, और उन गरीबों को याद करना है जो अपने जीवन में अभाव झेलते हैं। पस बंदा अपने गरीब भाईयों को याद करता है कि वे कैसे सख़्त भूख और प्यास को बरदाश्त करते हैं। इस लिए वह मदद का हाथ बढ़ाने तथा उन की मदद करने का प्रयास करता है।