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पाठ फ़रिश्तों पर ईमान
फ़रिश्तों पर ईमान रखने का अर्थः
फ़रिश्तों के वुजूद पर पुख़्ता यक़ीन (अस्तित्व पर दृढ़ विश्वास) रखना, और यह कि वे इंसान तथा जिन्नात से अलग एक ग़ैबी आलम (अदृश्य विश्व) हैं, तथा वे निहायत मुअज़्ज़ज़ और मुत्तक़ी (सम्मानित व संयमी) हैं, कमा हक़्क़हू (यथोचित) अल्लाह की इबादत करते हैं, उस के अहकामात व फ़रामीन को लागू करने में कोशां (प्रयत्नशील) रहते हैं और कभी भी उस की नाफ़रमानी (अवज्ञा) नहीं करते हैं। जैसा कि अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (بَلْ عِبَادٌ مُكْرَمُونَ • لَا يَسْبِقُونَهُ بِالْقَوْلِ وَهُمْ بِأَمْرِهِ يَعْمَلُون) (الأنبياء: 26-27). “बल्कि वह सब उस के मुअज़्ज़ज़ बंदे हैं। किसी बात में अल्लाह पर पेश दस्ती (पहल) नहीं करते बल्कि उस के फ़रमान पर कारबंद (तामील करने वाले) हैं।”{अल्अंबियाः 26-27}
फ़रिश्तों पर ईमान रखने की अहमीयत व महत्वः
फ़रिश्तों पर ईमान रखना ईमान के छः रुक्नों में से एक रुक्न है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (آمَنَ الرَّسُولُ بِمَا أُنْزِلَ إِلَيْهِ مِنْ رَبِّهِ وَالْمُؤْمِنُونَ كُلٌّ آَمَنَ بِاللهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِه) (البقرة: 285). “रसूल ईमान लाया उस चीज़ पर जो उस की तरफ़ अल्लाह की जानिब से उतरी और मुमिन भी ईमान लाये, यह सब अल्लाह और उस के फ़रिश्तों पर और उस की किताबों पर और उस के रसूलों पर ईमान लाये।”{अलबक़राः 285} और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि ईमान यह है किः “तुम अल्लाह पर, उस के फ़रिश्तों पर, उस की किताबों पर, उस के रसूलों पर, आख़िरत के दिन पर और अच्छी तथा बुरी तक़दीर पर ईमान रखो।” {मुस्लिमः 8}
फ़रिश्तों पर ईमान रखना हर मुस्लिम पर वाजिब है। और जो शख़्स उन के साथ कुफ़्र करे वह गुमराह तथा पथभ्रष्ट है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः {وَمَنْ يَكْفُرْ بِاللَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا بَعِيدًا} [النساء: 136] “और जो शख़्स अल्लाह से और उस के फ़रिश्तों से और उस की किताबों से और उस के रसूलों से और क़ियामत के दिन से कुफ़्र करे तो वह बहुत बड़ी दूर की गुमराही में जा पड़ा।”{अन्निसाः 136} अल्लाह तआला ने मुतलक़न् (बिला क़ैद व बंद / बंधन रहित) इन रुक्नों के इंकार करने वाले पर कुफ़्र का हुक्म लगाया है।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ख़बर दी है कि आसमान उन से भारी हो गया है जो उस में हैं। पस उस में एक बालिश्त भी ऐसी जगह नहीं जिस में कोई क़ियाम करने वाला या रुकू करने वाला या सज्दा करने वाला फ़रिश्ता न हो।
फ़रिश्तों पर ईमान के अंतर्गत (ज़िम्न में) कौन कौन सी चीज़ें आती हैं?
फ़रिश्तों की जिन सिफ़तों पर हम ईमान रखते हैं उन में से चंद यह हैः
अल्लाह तआला ने फ़रिश्तों के ज़िम्मे बहुत सारे काम सौंपे हैं, उन में से चंद यह हैः
निश्चित दुर्घटना (यक़ीनी हादिसा) से आदमी की मुक्ति की बात सुन कर या देख कर हम बहुत ज़्यादा तअज्जुब में पड़ (आश्चर्य चकित हो) जाते हैं। हालांकि हमें भूलना नहीं चाहिये कि फ़रिश्तों का एक अमल अल्लाह के हुक्म से मुहलिकात (हलाक करने वाली चीज़ों) से बनी आदम की हिफ़ाज़त भी है।