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पाठ नफ़्ली नमाज़ों के निषिद्ध समय (ममनूअ औक़ात)
नफ़्ली नमाज़ों के निषिद्ध समय (ममनूअ औक़ात)
एक मुसलमान के लिए हर वक़्त नफ़्ली नमाज़ पढ़ना जायज़ है, लेकिन मुख़्तलिफ़ वुजूहात की बिना पर इस्लाम ने उस को चंद औक़ात में नफ़्ली नमाज़ें पढ़ने से रोका हैः पस उन में से कुछ काफ़िरों की इबादतों का वक़्त है, और कुछ ऐसे हैं जिन में जहन्नम जोश मारता है, और कुछ ऐसे हैं जिन में सूरज शैतान के दो सींगों के दरमियान उदय होता है वग़ैरा वग़ैरा। अतः उन में कोई नमाज़ नहीं पढ़ी जायेगी सिवाय छूटी हुई फ़र्ज़ नमाज़ों की क़ज़ा के या सबब वाली नफ़्ली नमाज़ों के जैसे तहिय्यतुल मस्जिद (मस्जिद की सलामी नमाज़)। और यह बात सिर्फ़ नमाज़ की हद तक महदूद है। रही बात अल्लाह तआला के ज़िक्र व अज़कार और उस से दुआ की तो वह हर वक़्त मशरू हैं।
फ़ज्र की नमाज़ के बाद से सूर्योदय (सूरज तुलू) होने तक और उस के ऊँचाई की ओर थोड़ा सा उठने तक जिस की तहदीद शरीअत ने की है जो कि एक नेज़ा के बराबर है। और मोतदिल ममालिक (समशीतोष्ण देशों) में यह ऊँचाई सूर्योदय के लगभग 20 मिनट बाद होता है।
जब सूरज बीच आसमान में हो यहाँ तक कि ढल जाये, जो कि ज़ुह्र का वक़्त शुरू होने से कुछ देर पहले है।
अस्र की नमाज़ के बाद से सूरज ग़ुरूब (अस्त) होने तक।