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पाठ नफ़्ली रोज़े

अल्लाह तआला ने साल में एक महीने का रोज़ा फ़र्ज़ किया है, लेकिन अज्र व सवाब बढ़ाने के उद्देश से उस ने दूसरे दिनों के रोज़ों की तरग़ीब दिलाई है। आप इस पाठ में नफ़्ली रोज़ों की चंद क़िस्मों और उन की फ़ज़ीलतों से वाक़िफ़ हूँगे।

  • नफ़्ली रोज़ों की चंद क़िस्मों की जानकारी।
  • इन क़िस्मों के रोज़ों की फ़ज़ीलत और नेकी की जानकारी।

:एक और छात्र गिनें जिस ने इस पाठ को पूरा किया है

अल्लाह तआला ने साल में एक महीने का रोज़ा फ़र्ज़ किया है, लेकिन अज्र व सवाब बढ़ाने के उद्देश से उस ने उन लोगों को जो अपने नफ़्स में ताक़त और रग़बत रखते हैं दूसरे दिनों के रोज़ों की तरग़ीब दिलाई है। और उन दिनों में सेः

1. आशूरा दिवस

आशूरा मुहर्रम के महीने का दसवां दिन है। और मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर में पहला महीना है। और यह वह दिन है जिस में अल्लाह ने अपने नबी मूसा अलैहिस्सलाम को फ़िरऔन से नजात दिया। और मुस्लिम उस दिन मूसा अलैहिस्सलाम की नजात पर अल्लाह तआला का शुक्र अदा करने के लिए और हमारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इत्तिबा करते हुये रोज़ा रखते हैं, क्योंकि आप ने रोज़ा रखा था। और जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से आशूरा दिवस के रोज़े के संबंध में पूछा गया तो फ़रमायाः “वह पिछले एक साल (के गुनाहों) का कफ़्फ़ारा है।” {मुस्लिमः 1162} इसी तरह उस से एक दिन पहले यानी नौ मुहर्रम को रोज़ा रखना भी मुस्तहब है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “अगर मैं अगला साल ज़िंदा रहा तो नौ को ज़रूर रोज़ा रखूँगा।” {मुस्लिमः 1134}

2. अरफ़ा का दिन

यह इस्लामिक कैलेंडर के बारहवें महीने ज़ुल्-हिज्जा का नौवां दिन है। इस दिन हाजी लोग अरफात में अल्लाह तआला के सामने गिड़गिड़ा कर दुआ करने के लिए इकट्ठा होते हैं। और यह वर्ष का सर्वश्रेष्ठ दिन है। और अरफ़ा के दिन हज्ज न करने वालों के लिए रोज़ा रखना मशरू है। और जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अरफ़ा के दिन के रोज़े के बारे में पूछा गया तो फ़रमायाः “यह पिछले और अगले (दो) साल के गुनाहों का कफ़्फ़ारा है।” {मुस्लिमः 1162}

3. शव्वाल के छ दिन

और शव्वाल इस्लामिक कैलेंडर का दसवां महीना है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जिस ने रमज़ान के रोज़े रखे, उस के बाद शव्वाल के छ (नफ़्ली) रोज़े रखे तो यह पूरे ज़माने के रोज़े रखने की मानिंद है।” {मुस्लिमः 1164}

4. हर महीने तीन दिन के रोज़े

अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान फ़रमाते हैं कि मुझे मेरे ख़लील सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हर महीने तीन दिन के रोज़े रखने, चाश्त की नमाज़ पढ़ने और सोने से पहले वित्र अदा करने की वसीयत फ़रमाई। {बुख़ारीः 1178, मुस्लिमः 721}

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