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पाठ वक़्फ़

इस पाठ में हम वक्फ की अवधारणा (मतलब तथा अर्थ) और इस्लामी शरीअत में इस से संबंधित नियमों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

  • वक्फ की अवधारणा और इस की मशरूइयत की हिक्मत (इस के विधान के रूप में प्रवर्तन किये जाने का रहस्य) के बारे में जानकारी।
  • वक़्फ़ संबंधी अहकामात के बारे में जानकारी।

:एक और छात्र गिनें जिस ने इस पाठ को पूरा किया है

अमीरों और मालदारों में से चंद लोग जिन्हें अल्लाह तआला ने दौलत से नवाज़ा है वह अपने धनों में से कुछ वक़्फ़ करना चाहते हैं -जिस का मूल स्रोत बना रहे और फ़ायदे जारी रहें- और वह इस तरह कि उस के लाभ धर्मार्थ कार्यों (नेकी की राहों) में खर्च करते रहें, ताकि वे अपनी ज़िंदगी में तथा मृत्यु के बाद अज्र वसवाब कमाते रहें, और ताकि जरूरतमंद लोगों को इस वक़्फ़ से महान लाभ प्राप्त हो सके।

वक़्फ़ का अर्थ

यह मूल धन को रोकना और अल्लाह तआला से अज्र व सवाब (पुरस्कार) की उम्मीद करते हुये उस के लाभों को ख़ैरात (दान) कर देना है।

वक़्फ़ का हुक्म (विधान)

वक़्फ़ वांछनीय है, और यह बेहतरीन सदक़े में से है, और निकटता, परोपकार और दान के महान कार्यों में से है, और लाभ के एतेबार से उन में सब से सामान्य लाभ के कामों में से तथा सर्वाधिक फ़ायदेमंद चीज़ों में से है। क्योंकि यह उन कामों में से है जो मरने के बाद भी नहीं रुकते।

वक़्फ़ की हिक्मत

अल्लाह तआला ने वक़्फ़ को इस लिए मशरू क़रार दिया (शरीअत सम्मत किया) कि उस में दीन व दुनिया और आख़िरत की भलाइयाँ हैं। अतः बंदा अल्लाह की संतुष्टि की प्राप्ति के लिए अपने माल को वक़्फ़ कर के अपनी नेकीयों को बढ़ाता है, जो कि उस के मरने के बाद भी जारीरहती हैं। और जिस के नाम माल वक़्फ़ किया जाता है वह उस से लाभान्वित होता (फ़ायदा उठाता) रहता है, और वक़्फ़ करने वाले के लिए दुआ करता रहता है, जिस से समुदाय अधिक एकजुट हो जाता है।

और वक़्फ़ सर्वोत्तम दानों में से है। क्योंकि यह ऐसा दान है जो नेकी और एहसान की शक्लों में स्थायी और निरंतर है।

अल्लाह तआला ने फ़रमायाः {لَنْ تَنَالُوا الْبِرَّ حَتَّى تُنْفِقُوا مِمَّا تُحِبُّونَ وَمَا تُنْفِقُوا مِنْ شَيْءٍ فَإِنَّ اللَّهَ بِهِ عَلِيمٌ} [آل عمران: 92]. “जब तक तुम अपनी पसंदीदा चीज़ से अल्लाह के रास्ते में ख़र्च न करोगे हरगिज़ भलाई न पाओगे, और तुम जो ख़र्च करो उसे अल्लाह अच्छी तरह जानता है।” {आले इम्रानः 92}

उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, उन्हों ने कहाः कि उन को ख़ैबर में एक ज़मीन मिली, तो वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हो कर कहने लगे कि मुझे एक ज़मीन मिली है और इस से उम्दा माल मुझे कभी नहीं मिला था, तो इस संबंध में आप मुझे क्या मशवरा देते हें? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “अगर चाहो तो अस्ल जायदाद (मूल संपत्ति) को अपने अंडर में रोके रखो और उस के फ़ायदे को ख़ैरात कर दो।” पस उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे इस शर्त के साथ सदक़ा (वक़्फ़) किया कि अस्ल ज़मीन न बेची जाये, न हेबा की जाये और न विरासत में कसी को मिले। यह फ़क़ीरों, रिश्तेदारों, ग़ुलाम आज़ाद करने, मुजाहिदों, मेहमानों और मुसाफ़रों के लिए वक़्फ़ है। अल्बत्ता जो शख़्स भी इस का मुतवल्ली बने अगर भलाई के साथ उस में से खाये या किसी दोस्त को खिलाये तो कोई मुज़ायक़ा नहीं बशर्तीकि माल जमा करने का इरादा न हो। {बुख़ारीः 2772, मुस्लिमः 1632}

वक़्फ़ की क़िस्में

١
दीनी फ़ायदे के लिए वक़्फ़
٢
दुनियावी फ़ायदे के लिए वक़्फ़

दीनी फ़ायदे के लिए वक़्फ़

जैसे कि कोई व्यक्ति मस्जिद, या छात्रों के लिए स्कूल, या कमजोरों, गरीबों, अनाथों, विधवाओं आदि के लिए घर वक़्फ़ करे।

दुनियावी फ़ायदे के लिए वक़्फ़

जैसे कि वह कोई घर बना कर उसे अपने उत्तराधिकारियों के लिए वक़्फ़ कर दे, या कोई खेत वक़्फ़ कर दे और उस की फसलें उन के लिए छोड़ दे।

वक़्फ़ दो तरीकों में से किसी एक से सही तथा लागू होता है

١
कथनः जैसे यूँ कहेः मैं ने वक़्फ़ कर दिया, या मैं ने उत्सर्ग कर दिया या मैं ने ख़ैरात कर दिया आदि।
٢
कार्य: जैसे कोई मस्जिद बनाये और उस में लोगों को नमाज़ पढ़ने की अनुमति दे, या किसी कब्रिस्तान का कंपाउंड बनाये और उस में लोगों को दफनाने की अनुमति दे, या कोई स्कूल स्थापित करे और लोगों को उस में पढ़ने पढ़ाने की अनुमति दे, या कोई कुआँ खोदे और लोगों को उस से पानी पीने की अनुमति दे।

वक़्फ़ की शर्तें

١
कि वक़्फ़ करने वाला दान का पात्र हो, और वह जो वक़्फ़ करना चाहता है वह उस का स्वामी हो।
٢
कि वक़्फ़ की गई संपत्ति मूल्य वाली, मुक़र्रर और वक़्फ़कर्ता की स्वामित्व (मिलकियत) हो।
٣
कि वक़्फ एक ऐसी ज्ञात संपत्ति हो जिस के बाक़ी रहते हुये उस से फ़ायदा उठाना मुमकिन हो।
٤
कि वक़्फ़ नेक काम के लिए हो; जैसे मस्जिद, मेहराब, रिश्तेदार और गरीब।
٥
कि वक़्फ़ किसी विशिष्ट चीज़ पर हो जैसे- अमुक मस्जिद, या किसी क़िस्म पर हो; जैसे फ़क़ीर लोग, या किसी व्यक्ति पर हो; जैसे उदाहरण स्वरूप ज़ैद।
٦
कि वक़्फ़ स्थायी हो, अस्थायी नहीं, पूरा हो, सशर्त नहीं, मगर यह कि वह अपनी मृत्यु के साथ इस की शर्त लगा दे, ऐसी स्थिति में यह वैध है और वसीयत कहलायेगी।

वक़्फ़ कोई विशिष्ट राशि नहीं होती है, लेकिन यह लोगों की संपत्ति और प्रचुरता (वुसअत) की परिस्थितियों के आधार पर भिन्न होती है। पस जो कोई अमीर है और उस का कोई उत्तराधिकारी नहीं है, वह अपना सारा धन वक़्फ़ कर सकता है, और जो कोई अमीर है और उस के पास उत्तराधिकारी हैं, वह धन में से कुछ वक़्फ़ करे और बाकी वारिसों के लिए छोड़ दे।

वक़्फ़ अल्लाह तआला के लिए पूर्ण और शाश्वत है, और इस की अवधि के लिए कोई सीमा नहीं है। जिस ने भी अल्लाह के लिए एक भूमि, घर या खेत वक़्फ़ किया,तो वह उस के कब्जे और निपटान से निकल गया। इसे बेचा नहीं जा सकता, हिबा नहीं किया जा सकता, विरासत में नहीं दिया जा सकता, और न उसे वापसी के लिए मुतालबा किया जा सकता, और उत्तराधिकारियों को इसे बेचने का कोई अधिकार नहीं है। क्योंकि यह वारिस बनाने वाले की मिलकीयत से निकल गया है।

और जब व्यक्ति वक़्फ़ के शब्द का उच्चारण करे, या वक़्फ़कर्ता ऐसा काम करे वक़्फ़ की ओर इंगित करता है, तो इस से वक़्फ़ आवश्यक हो जाता है, और वक़्फ के सुबूत के लिए जिस को वक़्फ़ किया गया है उस के इक़रार की आवश्यकता नहीं है, और न ही शासक की अनुमति की आवश्यकता है, और जब वक़्फ़ स्थापित हो जाता है, तो उस में इस तरह से निपटाने की अनुमति नहीं है कि उस से उस का वक़्फ़ होना खत्म हो जाए।

अल्लाह तआला पाक है और पाकीज़गी ही को क़बूल करता है। अतः अगर कोई मुसलमान अल्लाह तआला की संतुष्टि के लिए कोई चीज़ वक़्फ़ करना चाहे, तो उस के लिए यह बेहतर है कि वह अपनी संपत्ति में से सब से अच्छा, मूल्यवान ओर उस के नज़दीक सब से प्रिय संपत्ति को चुने। और यह पूर्ण धार्मिकता और परोपकार (नेकी और एहसान) है।

वक्फ के सर्वोत्तम पहलू वे हैं जिन का लाभ हर समय और हर स्थानों पर मुसलमानों को मिलता है, जैसे मस्जिदों, छात्राओं, मुजाहिदीन, रि के लिए वक्फ, छात्र, जो सर्वशक्तिमान ईश्वर के लिए प्रयास करते हैं, रिश्तेदारों, गरीब और कमजोर मुसलमानों प्रभृति के लिए।

वक़्फ़ के कुछ अहकाम

١
वक़्फ़ अमीर, गरीब, रिश्तेदार, ग़ैर रिश्तेदार, संस्थाओं और व्यक्तियों सब के लिए मान्य है।
٢
एक से अधिक तरफ को वक़्फ़ करना जायज़ है; जैसे गरीब, विद्वान, छात्र इत्यादि।
٣
उस चीज़ का वक़्फ़ करना सही नहीं है जिस का उपयोग करने से ख़त्म हो जाता है; जैसे कि पैसा, भोजन, पेय। इसी तरह उस चीज़ का वक़्फ़ करना भी सही नहीं है जिसे बेचना जायज़ नहीं है, जैसे गिरवी रखी हुई और हड़पी हुई संपत्ति।

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