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पाठ इस्तिंजा तथा क़ज़ाये हाजत (पेशाब पाख़ाना) के आदाबः
क़ज़ाये हाजत के आदाब
मुस्तहब (उत्तम) है कि व्यक्ति ट्वाइलेट में प्रवेश करते समय पहले अपना बायाँ पैर बढ़ाये, और कहेः “बिस्मिल्लाह, अल्लाहुम्म इन्नी अऊज़ु बिक मिनल् ख़ुबुसि वल्ख़बाइस”। "بِسْمِ اللهِ، اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْخُبُثِ وَالْخَبَائِثِ". यानीः “अल्लाह के नाम से (प्रवेश करता हूँ)। ऐ अल्लाह! मैं आप की पनाह पकड़ता हूँ ख़बीस जिन्नों और ख़बीस जिन्नीयों से”।
क़ज़ाये हाजत के दौरान लोगों की नज़रों से अपनी शर्मगाह को छिपाना मुस्लिम पर आवश्यक है।
उस पर हराम है कि ऐसी जगह में क़ज़ाये हाजत करे जिस से लोगों को तक्लीफ़ होती हो।
अगर वह रेगिस्तान या खुले मैदान में हो तो उस पर हराम है कि वह किसी बिल में क़ज़ाये हाजत करे, क्योंकि उस में कीड़े मकोड़े के होने का आशंका है जिन्हे वह तक्लीफ़ पहुँचाये या वह उसे तक्लीफ़ पहुँचाये।
(बने ट्वाइलेट में) क़ज़ाये हाजत के लिए क़िबला की तरफ़ चेहरा या पीठ कर के बैठना नहीं चाहिये। लेकिन अगर व्यक्ति रेगिस्तान या खुले मैदान में हो और दीवार की आड़ न हो तो क़िबला की तरफ़ चेहरा या पीठ कर के न बैठना वाजिब तथा ज़रूरी है। क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जब तुम क़ज़ाये हाजत के लिए आओ तो क़िबला रुख़ हो कर न बैठो और न उस की तरफ़ पीठ करो।” {बुख़ारीः 386, मुस्लिमः 264}
उस पर वाजिब है कि वह अपने कपड़े तथा जिस्म को उड़ने वाली गंदगीयों में से किसी चीज़ के लगने से बचाये। और अगर उन में से कुछ लग जाये तो उस का धोना ज़रूरी है।
क़ज़ाये हाजत के बाद दो में से किसी एक का करना ज़रूरी है।
इस्तिंजा यह है कि वह अपने मलद्वार (शरीर में से पेशाब और पाख़ाना की जगह) को पानी से साफ़ करे।
इस्तिजमार यह है कि तीन या तीन से अधिक बार ऐसे टिशू पेपर अथवा पत्थर आदि का इस्तेमाल करे जिस के ज़रीया मलद्वार गंदगी से पाक साफ़ हो जाये।
हदस (अपवित्रता)
हदस इंसान में एक अंदरूनी गुण है जो उसे पाकी हासिल करने से पहले नमाज़ पढ़ने से रोकती है। और यह गंदगी की तरह अनुभूत वस्तु (महसूस की जाने वाली चीज़) नहीं है।
हदस मुस्लिम से उस वक़्त दूर होता है जब वह पाक पानी से वुज़ू या ग़ुस्ल करे। और पाक पानी वह पानी है जिस में गंदगी का संमिश्रण (मिलावट) न हुआ हो जिस के सबब उस के रंग, टेस्ट या बू में तब्दीली (परिवर्तन) आ जाये।
हदस की दो क़िस्में हैं
हदसे अस्ग़र और उस से (पाकी हासिल करने के लिए) वुज़ू
मुस्लिम की तहारत (पवित्रता) टूट जाती है और नमाज़ के लिए उस पर वुज़ू करना ज़रूरी हो जाता है जब निम्नलिखित वुज़ू तोड़ने वाली चीज़ों में से कोई एक पाई जायेः
1- पेशाब और पाख़ाना तथा हर वह चीज़ जो इन दोनों के रास्ते से निकले जैसे हवा। अल्लाह तआला ने तहारत को तोड़ने वाली चीज़ों के बयान में फ़रमायाः (أَوْ جَاءَ أَحَدٌ مِنْكُمْ مِنَ الْغَائِطِ)(النساء: 43). “या तुम में से कोई क़ज़ाये हाजत से आया हो।” {अन्निसाः 43} और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नमाज़ में हवा ख़ारिज होने का शक करने वाले व्यक्ति के संबंध में फ़रमायाः “वह नमाज़ न तोड़े यहाँ तक कि (हवा ख़ारिज होने की) आवाज़ सुने या उस की बदबू महसूस करे।” {बुख़ारीः 175, मुस्लिमः 361}
2- बिना किसी आवरण के भोगेच्छा (आड़ के बग़ैर नफ़सानी ख़ाहिश) के साथ शर्मगाह को हाथ लगाना। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जो अपनी शर्मगाह को छूये वह वुज़ू करे।” {अबू दाऊदः 181}
3- ऊँट का गोश्त खाना। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सवाल किया गया कि क्या हम ऊँट का गोश्त खा कर वुज़ू करें? तो आप ने फ़रमायाः “हाँ।” { मुस्लिमः 360}
4- नींद, पागलपनी, बेहोशी या नशा के कारण विवेक-बुद्धि का विलुप्त हो जाना (अक़्ल का काम न करना)।