वर्तमान खंड: :मॉडल
पाठ वुज़ू
वुज़ू की फ़ज़ीलत
वुज़ू और तहारत उन अफ़ज़ल आमाल में से हैं जिन से मुस्लिम के दर्जे बुलंद होते हैं। और जब बंदा ख़ालिस नीयत के साथ अल्लाह तआला से अज्र व सवाब का तलबगार होता है तो वह उस के गुनाहों और पापों को मिटा देता है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जब मुस्लिम बंदा वुज़ू करते हुये अपना चेहरा धोता है तो उस के चेहरे से पानी के साथ वह तमाम गुनाह निकल जाते हैं जो उस ने अपनी आँखों से किये थे। फिर जब अपने हाथ धोता है तो उस के हाथों से पानी के साथ वह सब गुनाह निकल जाते हैं जो उस ने हाथों को इस्तेमाल कर के किये थे। फिर जब अपने पैर धोता है तो पानी के साथ वह सब गुनाह निकल जाते हैं जो उस ने पैरों से चल कर के किये थे, यहाँ तक कि वह गुनाहों से पाक साफ़ हो जाता है।” {मुस्लिमः 244}
मैं कैसे वुज़ू करूँ और हदसे अस्ग़र (छोटी नापाकी) को कैसे दूर करूँ?
नीयत
जब मुस्लिम वुज़ू करने का इरादा करे तो ज़रूरी है कि वह इस की नीयत करे, अर्थात (ज़ुबान से नहीं बल्कि) दिल व दिमाग़ से इरादा करे कि वह अपने इस कार्य से हदस तथा अपवित्रता दूर करने जा रहा है। और हर कार्य में नीयत का होना शर्त है। जैसा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “अमलों का दारो मदार (निर्भर) नीयतों ही पर है।” {बुख़ारीः 1, मुस्लिमः 1907} फिर निम्नोक्त क्रमानुसार दौराने वुज़ू बीच में लंबा फ़ासिला के बग़ैर वुज़ू की शुरूआत करे।
सुन्नत यह है कि अपनी दोनों हथेलीयों को पानी से तीन मरतबा धोये।
पानी से कुल्ली करे, अर्थात अपने मुँह के अंदर पानी डाल कर उसे वहीं गर्दिश कराये फिर बाहर फेंक दे। और उस के लिए ऐसा तीन बार करना मुस्तहब है तथा एक बार करना वाजिब है।
नाक में पानी चढ़ाये, अर्थात नाक के अंदरूनी हिस्सा में पानी पहुँचाये, फिर उसे झाड़ कर साफ़ करे। और उस के लिए इस में मुबालग़ा (अत्युक्ति) करना मुस्तहब है मगर यह कि यह उस के लिए हानि का सबब बने या वह रोज़े से हो। और ऐसा एक बार करना वाजिब है तथा तीन बार करना मुस्तहब है।
अपना चेहरा -पेशानी के ऊपर बाल निकलने की जगह से ठूड़ी के नीचे तक और एक कान से दूसरे कान तक- धोये। और दोनों कान चेहरा में शामिल (के अंतर्गत) नहीं हैं। और ऐसा एक बार करना वाजिब है तथा तीन बार करना मुस्तहब है।
उँगलीयों के किनारे से कुहनीयों तक अपने दोनों हाथों को धोये। और दोनों कुहनीयाँ धोने में दाख़िल हैं। पहले दायाँ हाथ धोना और तीन तीन बार धोना मुस्तहब है। तथा एक बार धोना वाजिब है।
अपने सर का इस तरह मसह करे कि अपने दोनों हाथों को पानी से भिगो ले फिर उन्हे सर के अगले भाग से गुद्दी तक ले जाये, और फिर उन्हे सर के अगले भाग तक दोबारा वापस ले आये। और दूसरे अंगों की तरह सर का मसह तीन बार करना मसनून नहीं है, बल्कि एक ही बार करेगा।
सर का मसह करने के बाद अपने दोनों कानों का इस तरह मसह करे कि अपनी दोनों शहादत (तर्जनी) उँगलीयों को कानों के अंदरूनी भाग में दाख़िल कर के अंदर का और दोनों अंगूठे के ज़रीया कानों के ऊपरी हिस्से का मसह करे।
टखनों समेत अपने दोनों पैरों को धोये। और बेहतर है कि दायाँ पैर से शुरू करे। और हर पैर को तीन तीन बार धोना मुस्तहब है, लेकिन वाजिब एक ही बार है। और अगर मोज़े पहने हुये हो तो चंद शर्तों के साथ उन पर मसह करना जायज़ है।