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पाठ क़ुरआने करीम के फ़ज़ाएल
क़ुरआने करीम के कई सारे अज़ीम फ़ज़ाएल हैं, उन में से कुछ यह हैंः
उसमान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “तुम में सब से बेहतर वह है जो क़ुरआन सीखे और सिखाये।” {बुख़ारीः 5027}
अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “बेशक लोगों में से कुछ अल्लाह वाले (औलिया और प्यारे) हैं।” सहाबा ने पूछाः ऐ अल्लाह के रसूल! वह कौन हैं? आप ने फ़रमायाः “वह क़ुरआन (पढ़ने पढ़ाने) वाले हैं जो अल्लाह के ख़ास (औलिया और प्यारे) हैं।” {इब्नु माजाः 215}
अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, उन्हों ने कहाः रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “"जो शख़्स अल्लाह की किताब से एक अक्षर पढ़ता है, उस के लिए एक नेकी है, और एक नेकी दस के समान है। मैं नहीं कहता कि अलिफ़ लाम मीम एक अक्षर है, बल्कि अलिफ एक अक्षर है, लाम एक अक्षर है और मीम एक अक्षर है।"।” {तिर्मिज़ीः 2910}
4. कुरआन की तिलावत और अध्ययन सभाओं में फ़रिश्तों, शांति और दया का अवतरण:
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जो कोई भी अल्लाह के घरों में से किसी घर में उस की किताब पाठ करने तथा आपस में उस का अध्ययन करने के लिए इकट्ठा होते हैं, उन पर शांति उतरती है, दया उन्हें ढाँप लेती है, फ़रिश्ते उन्हें घेर लेते हैं, और अल्लाह उन का ज़िक्र करता उन लोगों में जो उन के पास हैं।” {मुस्लिमः 2699}
5- क़ुरआन का अपने पढ़ने वालों और अमल करने वालों के लिए सिफ़ारिश
अबू उमामा बाहिली रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फ़रमाते हुये सुनाः “क़ुरआन पढ़ो, क्योंकि वह क़ियामत के दिन अपने पढ़ने वालों और अमल करने वालों के लिए सिफ़ारिश करता हुआ आयेगा।” {मुस्लिमः 804}
आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है, उन्हों ने कहाः रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “क़ुरआन पढ़ने में माहिर मुकर्रम व मुक़र्रब फ़रिश्तों के साथ होंगे और जो उसे लड़खड़ाते हुये पढ़ता है और वह उस के लिए मुशकिल है, तो उस के लिए डबल अज्र है।” {मुस्लिमः 798}
7. कुरआन अपने पढ़ने और अमल करने वाले को ऊपर उठाता है
उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “बेशक अल्लाह इस क़ुरआन के माध्यम से कुछ लोगों को बुलंद फ़रमाता है और कुछ लोगों को पस्त करता है।” {मुस्लिमः 817}
अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है, उन्हों ने कहाः रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “कुरआन के हाफ़िज़ से कहा जायेगा: पढ़ते जाओ और चढ़ते जाओ। और उस तरह तरतील के साथ पढ़ो जिस तरह तुम दुनिया में पढ़ते थे, बेशक तुम्हारा निवास उस अंतिम आयत के पास होगा जो तुम पढ़ोगे।” {अबू दाऊदः 1464}
9. क़ुरआन वाले को क़ियामत के दिन हुल्ला (वह वस्त्र जो कपड़ों के ऊपर ज़ीनत के तौर पर पहना जाता है) और गरिमा का ताज पहनाया जायेगा
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “"क़ुरआन क़ियामत के दिन आएगा और कहेगा: हे रब, इसे (क़ुरआन वाले को) पहना कर सम्मनित कर, पस उसे गरिमा का मुकुट पहनाया जायेगा। फिर वह कहेगा: हे प्रभु, और बढ़ा, तो उसे गरिमा का हुल्ला पहनाया जायेगा। फिर वह कहेगा, हे मेरे रब, उस पर प्रसन्न हो, पस वह उस से प्रसन्न हो जायेगा और उस से कहा जायेगाः पढ़ते जाओ और चढ़ते जाओ। और हर एक आयत के साथ एक नेकी का इज़ाफ़ा किया जायेगा।” {तिर्मिज़ीः 2915}
10- अल्लाह तआला क़ुरआन वाले के वालेदैन को महान सम्मानों से सम्मानित करेगा।
सह्ल बिन मुआज़ रिवायत करते हैं, वह अपने पिता मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जो कोई क़ुरआन पढ़े और उस पर अमल करे तो उस के माता-पिता को क़ियामत के दिन एक ऐसा ताज पहनाया जाएगा, जिस का उजाला इस दुनिया के घरों में सूरज की रोशनी से भी अच्छा है, अगर वह तुम में होता। (फिर जब यह उस के माता पिता दर्जा है) तो तुम उस व्यक्ति के बारे में क्या सोचते हो जिस ने ऐसा किया?” {अबू दाऊदः 1453}
11. कुरआन हिफ़्ज़ करना और उसे सीखना दुनिया तथा जो कुछ उस में है उस से बेहतर है।
उक़्बा बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम निकले और हम दीवान ख़ाना में थे, पस आप ने फ़रमायाः “तुम में से कौन चाहता है कि रोज़ाना सुबह को बुतहान या अक़ीक़ जाये, और वहाँ से दो ऊँटनीयां बड़े बड़े कोहान की लाये, बग़ैर किसी गुनाह के और बग़ैर इस के कि किसी रिश्तेदार की हक़ तलफ़ी करे।” तो हम ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! हम सब इस को चाहते हैं। आप ने फ़रमायाः “फिर तुम में से कोई क्यों नहीं मस्जिद में जा कर सिखाता या अल्लाह की किताब की दो आयतें पढ़ता जो उस के लिए बेहतर हैं दो ऊँटनीयों से, और तीन बेहतर हैं तीन ऊँटनीयों से, और चार बेहतर हैं चार ऊँटनीयों से, और इसी तरह जितनी आयतें हैं उतनी ऊँटनीयों से बेहतर हैं।” {मुस्लिमः 803}