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पाठ अल्लाह की उलूहीयत पर ईमान

अल्लाह तआला ही सच्चा माबूद है, और उस के अलावा अन्य सभी माबूद बातिल हैं। आप इस पाठ में तौहीदे उलूहीयत के अर्थ की और उस की अहमीयत की जानकारी प्राप्त करेंगे।

  • तौहीदे उलूहीयत के अर्थ की जानकारी।
  • तौहीदे उलूहीयत की अहमीयत की जानकारी।

:एक और छात्र गिनें जिस ने इस पाठ को पूरा किया है

तौहीदे उलूहीयत का अर्थः

पुख़्ता यक़ीन व अक़ीदा रखना कि अल्लाह तआला अकेला इबादत की तमाम ज़ाहिरी व बातिनी क़िस्मों का हक़दार है। पस हम हर तरह की इबादतों -जैसे दुआ, ख़ौफ़, तवक्कुल, मदद तलब करना, नमाज़, ज़कात और रोज़ा आदि- में अल्लाह को एक मानेंगे, क्योंकि उस के सिवा कोई सच्चा माबूद है ही नहीं। जैसा कि इरशाद हैः (إِلَهُكُمْ إِلَهٌ وَاحِدٌ فَمَنْ كَانَ يَرْجُو لِقَاءَ رَبِّهِ فَلْيَعْمَلْ عَمَلًا صَالِحًا وَلَا يُشْرِكْ بِعِبَادَةِ رَبِّهِ أَحَدًا) (الكهف: 110). “तुम सब का माबूद सिर्फ़ एक ही माबूद है, तो जिसे भी अपने परवरदिगार से मिलने की आर्ज़ू हो उसे चाहिये कि नेक आमाल करे और अपने परवरदिगार की इबादत में किसी को भी शरीक न करे।” {अलकह्फ़ः 110}

पस अल्लाह तआला ने ख़बर दी कि इलाह एक ही इलाह (माबूद) है। अतः उस के अलावा किसी को माबूद बना कर (या समझ कर) उस की इबादत करना हरगिज़ जायज़ नहीं है।

(إِنَّمَا إِلَهُكُمُ اللهُ الَّذِي لا إِلَهَ إِلاَّ هُوَ وَسِعَ كُلَّ شَيْءٍ عِلْمًا) (طه: 98). “अस्ल बात यह है कि तुम सब का सच्चा माबूद सिर्फ़ अल्लाह ही है, उस के सिवा कोई परस्तिश के क़ाबिल (पूजने योग्य) नहीं, उस का इल्म तमाम चीज़ों पर हावी (व्याप्त) है।” {ताहाः 98}

तौहीदे उलूहीयत की अहमीयत व महत्वः

तौहीदे उलूहीयत की अहमीयत मुख़्तलिफ़ पहलूओं से ज़ाहिर व उजागर होती हैः

1- जिन्नात व इंसान को पैदा किये जाने का यही मक़सद और उद्देश हैः

पस वे नहीं पैदा किये गये मगर केवल अल्लाह ही की इबादत के लिए जिस का कोई शरीक व साझी नहीं। जैसा कि इरशाद हैः (وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنْسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ) (الذاريات: 56). “मैं ने जिन्नात और इंसानों को केवल इसी लिए पैदा किया है कि वह सिर्फ़ मेरी इबादत करें।” {अज़्ज़ारियातः 56}

2- रसूलों अलैहिमुस्सलाम और आसमानी किताबों के नाज़िल किये जाने का मक़सद यही है

इस से ग़र्ज़ मख़लूक़ को एक अल्लाह की तरफ़ बुलाना है, और उस के अलावा पूजे जाने वाले तमाम माबूदों के साथ कुफ़्र है। जैसा कि अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (وَلَقَدْ بَعَثْنَا فِي كُلِّ أُمَّةٍ رَسُولًا أَنِ اعْبُدُوا اللهَ وَاجْتَنِبُوا الطَّاغُوت) (النحل: 36). “हम ने हर उम्मत में रसूल भेजा कि (लोगो!) सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करो और उस के सिवा तमाम माबूदों से दूर रहो।” {अन्नह्लः 36}

3- इंसान के ऊपर सब से पहली चीज़ जो वाजिब है वह यही है

जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु को यमन की ओर भेजते समय यह कहते हुये वसीयत की थीः “तुम अहले किताब की क़ौम (यहूद व नसारा सम्प्रदाय)) के पास जा रहे हो, पस तुम उन को सब से पहले अल्लाह की इबादत की तरफ़ बुलाना।” {बुख़ारीः 1458, मुस्लिमः 19}

4- तौहीदे उलूहीयत ही ला इलाह इल्लल्लाह का हक़ीक़ी मअ्ना (वास्तविक अर्थ) है

क्योंकि इलाह का अर्थ माबूद है। और ला इलाह इल्लल्लाह का अर्थः नहीं है कोई हक़ीक़ी माबूद मगर अल्लाह है। लिहाज़ा हम केवल उसी की इबादत करेंगे, और इबादत की कोई भी क़िस्म उस के अलावा किसी के लिए सर्फ़ नहीं करेंगे।

5- उलूहीयत पर ईमान लाना अल्लाह के ख़ालिक़ व मालिक और मुतसर्रिफ़ (फेर बदल करने वाला) होने पर ईमान लाने का मनतिक़ी नतीजा (तार्किक परिणाम) है

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