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पाठ मदीना नबवी की ज़ियारत
बेशक मुबारक मदीना नबवी के मान में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उस की ओर हिजरत कर के आने से चार चांद लग गया, यहाँ तक कि मक्का मुकर्रमा के बाद सर्वश्रेष्ठ धरती क़रार पाई। उस की ज़ियारत हर वक़्त मशरू है, हज्ज के साथ जुड़ी हुई नहीं है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “कजावे नहीं कसे जायेंगे मगर तीन मस्जिदों की तरफ़ः मस्जिदे हराम, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मस्जिद और मस्जिदे अक़सा।” {बुख़ारीः 1189, मुस्लिमः 1397} मदीना के बहुत सारे फ़ज़ाएल हैं, उन में सेः
मदीना आने के बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सब से पहला जो काम किया वह है उस शरीफ़ मस्जिदे नबवी की तामीर जो इल्म व दअ्वत और लोगों के ख़ैर व कल्याण के प्रचार करने का सेंटर तथा गहवारा बन गया। और इस मुबारक मस्जिद की बड़ी फ़ज़ीलत है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “मेरी इस मस्जिद में एक नमाज़ मस्जिदे हराम के अलावा दूसरी मस्जिदों के मुक़ाबिले में हज़ार नमाज़ से बेहतर है।” {बुख़ारीः 1190, मुस्लिमः 1394}
2. यह एक सुरक्षित परिसर (पुर अम्न हरम) है
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसे अल्लाह की तरफ़ से वह्य के ज़रीया हरम क़रार दिया है, चुनांचि इस में कोई खून नहीं बहाया जायेगा, इस में कोई हथियार नहीं उठाया जायेगा, इस में किसी को आतंकित नहीं किया जायेगा, इस में कोई पेड़ नहीं काटा जायेगा वग़ैरा वग़ैरा चीजें जो इस के निषेध के अंतर्गत आते हैं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “उस की घास न काटी जाये, उस का शिकार न भगाया जाये, उस की गिरी पड़ी चीज़ न उठाई जाये मगर वह जो इस का एलान करे, और उस का दरख़्त न काटा जाये मगर कोई अपने ऊँट को चारा देना चाहे तो जायज़ है, और उस में लड़ाई की ग़र्ज़ से हथियार न उठाया जाये।” {अबू दाऊदः 2035, अहमदः 959}
3. जीविका, फल और अच्छे गुज़र बसर में बरकतः
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “ऐ अल्लाह! हमारे फल में बरकत दे। हमारे शहर में बरकत दे। हमारे साअ् में बरकत दे और हमारे मुद्द् में बरकत दे। ऐ अल्लाह! बेशक इब्राहीम अलैहिस्सलाम तेरे बंदे, तेरे ख़लील और तेरे नबी हैं। और मैं भी तेरा बंदा और नबी हूँ। उन्हों ने तुझ से मक्का के लिए दुआ की। और मैं तुझ से मदीना के लिए उसी की मिस्ल दुआ करता हूँ जिस तरह उन्हों ने की, तथा उस के साथ उस जैसी और।” {मुस्लिमः 1373}
4- अल्लाह की तरफ़ से उस की हिफ़ाज़त ताऊन (प्लेग) और दज्जाल सेः
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “मदीना के खंडरात पर फ़रिश्ते हैं, न तो प्लेग और न ही दज्जाल उस में प्रवेश कर पायेंगे” {बुख़ारीः 1880, मुस्लिमः 1379}
5. इस में रहने, जीने और मरने की फ़ज़ीलतः
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ियामत के दिन उन लोगों के लिए सिफ़ारिश करने का वादा किया जो मदीना की कठिनाई और उस में जीविका की संकीर्णता पर सब्र करे। साद बिन अबी वक़्क़ास रज़ियल्लाहु से रिवायत है, उन्हों ने कहाः रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “मदीना उन के लिए बेहतर है काश वह जानते। और नहीं छोड़ता कोई मदीना को उस से बेज़ार हो कर मगर अल्लाह तआला उस से बेहतर कोई आदमी उस में भेज देता है। और नहीं सब्र करता है कोई उस की भूक पियास पर और मेहनत व मशक़्क़त पर मगर मैं क़ियामत के दिन उस का सिफ़ारिशी या गवाह हूँगा।” {मुस्लिमः 1363}
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दूसरी हदीस में फ़रमायाः “जो मदीना में मर सके चाहिये कि वह वहीं मरे, क्योंकि मैं उस में मरने वाले के लिए सिफ़ारिश करूँगा।” {तिर्मिज़ीः 3917, इब्नु माजाः 3112}
6. वह ईमान की गुफा है, और वह उस में से बुराई और ख़बासत व गंदगी को दूर करता है:
पृथ्वी कितना भी संकीर्ण क्यों न हो जाये, ईमान उस का सहारा लेगा। और उस में ख़बीसों और दुष्टों का कोई स्थान या निरंतरता (इस्तिमरार) नहीं है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “ईमान मदीना की ओर उस तरह झुक पड़ेगा जिस तरह साँप अपने बिल में घुस जाता है।” {बुख़ारीः 1876, मुस्लिमः 147} रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने और फ़रमायाः “क़सम है उस ज़ात की जिस के हाथ में मेरी जान है, कोई शख़्स मदीना से बेज़ार हो कर नहीं निकलता कि अल्लाह तआला उस से बेहतर कोई दूसरा शख़्स उस में भेज देता है। आगाह रहो कि मदीना लोहार की भट्टी की तरह है जो मैल को निकाल देता है। क़ियामत उस वक़्त तक क़ायम न होगी जब तक कि मदीना अपने शरीर (बुरे) लोगों को न निकाल दे, जैसे कि भट्टी लोहे की मैल को निकाल देती है।” {मुस्लिमः 1381}
7. यह पापों और बोझों को दूर करता है:
ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, उन्हों ने कहाः रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “यह तैबा है -यानी मदीना- और यह मदीना मैल को दूर करता है जैसे आग चांदी की मैल को दूर करती है।” {बुख़ारीः 4589, मुस्लिमः 1384}
मदीना की ज़ियारत करने वाले को इन आदाब का ख़्याल रखना चाहियेः
1- जो व्यक्ति मदीना आने का इरादा करे उस के लिए मशरू यह है कि वह अपने सफ़र से रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मस्जिद की ज़ियारत तथा उस की ओर यात्रा का इरादा करे, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ब्र का नहीं। क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “कजावे न बाँधे जायें मगर तीन मस्जिदों की तरफ़ः मस्जिदे हराम, मस्जिदे नबवी और मस्जिदे अक़सा।” {बुख़ारीः 1189, मुस्लिमः 1397}
2- ज़ायर (ज़ियारत करने वाला) जब मस्जिद को पहुँचे तो उस के लिए सुन्नत है कि पहले अपने दायें पैर को बढ़ाये और कहेः «اللَّهُمَّ افْتَحْ لِي أَبْوَابَ رَحْمَتِكَ». (مسلم 713). अल्लाहुम्मफ़्तह् ली अबवाब रहमतिक। यानी (ऐ अल्लाह! तू मेरे लिए तेरी रहमत के दरवाज़े खोल दे)।
3- दो रकअत तहिय्यतुल मस्जिद पढ़े, और अगर इन्हें रौज़ा शरीफ़ में पढ़े तो बेहतर है।
4. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप के दो साथियों की कब्र की ज़ियारत सुन्नत है, पस वह अदब व एहतेराम के साथ आवाज़ को पस्त करते हुये नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की कब्र के सामने खड़ा हो और कहेः "السلام عليك أيها النبي ورحمة الله وبركاته، أشهد أنك رسول الله حقا وأنك قد بلغت الرسالة وأديت الأمانة ونصحت الأمة وجاهدت في الله حق جهاده , فجزاك الله عن أمتك أفضل ما جزى نبيا عن أمته" अस्सलामु अलैक अय्युहन्नबीय्यु व रहमतुल्लाहि व बरकातुह। अशहदु अन्नक रसूलुल्लाहि हक़्क़न् व अन्नक क़द् बल्लग़्तर् रिसालत व अद्दैतल् अमानत व नसहतल् उम्मत व जाहद्त फ़िल्लाहि हक़्क़ जिहादिहि, फ़जज़ाकल्लाहु अन् उम्मतिक अफ़ज़ल मा जज़ा नबिय्यन् अन् उम्मतिहि। "ऐ नबी, आप पर शांति तथा अल्लाह की रहमत व बरकत नाज़िल हो, मैं गवाही देता हूं कि आप वास्तव में अल्लाह के रसूल हैं, और आप ने रिसालत को पहुँचा दिया है, अमानत अदा कर दी है, उम्मत की ख़ैर ख़ाही की है, और अल्लाह के लिए कमा हक़्क़हू संघर्ष किया है। पस अल्लाह आप को आप की उम्मत की ओर से सब से अच्छा इनाम दे जो कि उस ने किसी नबी को अपनी उम्मत की ओर से पुरस्कृत किया।”
फिर वह अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु की कब्र के सामने खड़े होने के लिए अपने दाहिनी ओर एक या दो कदम आगे बढ़े, और सलाम करे तथा दुआ करे कि अल्लाह उन से राज़ी हो। फिर उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की कब्र के सामने खड़े होने के लिए अपने दाहिनी ओर एक या दो कदम आगे बढ़े, और सलाम करे तथा दुआ करे कि अल्लाह उन से राज़ी हो।
5. मस्जिदे नबवी की ज़ियारत करने वाले के लिए वांछनीय है कि वह उस में ज़्यादा से ज़्यादा नमाज़ पढ़े, ताकि वह बड़ा इनाम प्राप्त कर सके जिस का वादा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस फ़रमान में किया गया हैः “मेरी इस मस्जिद में एक नमाज़ और मस्जिदों के तुलना में हज़ार नमाज़ों से बेहतर है सिवाय मस्जिदे हराम के।” {बुख़ारीः 1190, मुस्लिमः 1394}
6- मस्जिदे क़ुबा में नमाज़ पढ़ने के लिए उस की ज़ियारत करना मसनून है। क्योंकि इस की फ़ज़ीलत में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जो शख़्स निकले यहाँ तक कि इस मस्जिद -मस्जिदे क़ुबा- को पहुँचे और उस में दो रकअत नमाज़ पढ़े, तो यह उस के लिए एक उम्रह के समान है।” {नसाईः 699}
7- बक़ीअ् क़ब्रिस्तान और शुहदा-ए-उहुद की क़ब्रिस्तान की ज़ियारत करना मसनून है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन की ज़ियारत करते और उन के लिए दुआ करते। और आप की दुआओं में से हैः "السَّلَامُ عَلَيْكُمْ أَهْلَ الدِّيَارِ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُسْلِمِينَ، وَإِنَّا إِنْ شَاءَ اللهُ لَلَاحِقُونَ، أَسْأَلُ اللهَ لَنَا وَلَكُمُ الْعَافِيَةَ" (مسلم 975). “अस्सलामु अलैकुम अहलद्दियारि मिनल् मुमिनीन वल् मुस्लिमीन, व इन्ना इन् शा अल्लाहु ललाहिक़ून, अस्अलुल्लाह लना व लकुमुल् आफ़िया।” {मुस्लिमः 975} “ऐ मुमिनों और मुसलमानों की बस्तीयों वालो! तुम पर सलाम हो। अगर अल्लाह ने चाहा तो हम भी यक़ीनन तुम्हें मिलने वाले हैं। मैं अल्लाह से अपने और तुम्हारे लिए आफ़ियत का सवाल करता हूँ।”
8. कि मुसलमान इस शहर में अल्लाह की आज्ञा पर सीधे रहने के लिए उत्सुक हों, अल्लाह और उस के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आज्ञाकारिता के लिए प्रतिबद्ध हों, और बिद्अत तथा नाफ़रमानी में वाक़ेअ् होने से बहुत सावधान रहें।
9- कि वह मदीना में कोई पेड़ न काटे या कोई जानवर शिकार न करे। जैसा कि बहुत सारी हदीसों में इस की मनाही आई है, उन में से एक यह है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “बेशक इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मक्का को हरम मुक़र्रर फ़रमाया। और मैं मदीना का हरम मुक़र्रर करता हूँ दोनों काले पत्थर वाले मैदानों के बीच में। कोई कांटे दार दरख़्त न काटा जाये, और न कोई जानवर शिकार किया जाये।” {मुस्लिमः 1362}
10- मदीना में रहने के दौरान मुसलमान को यह एहसास व शुऊर होना चाहिये कि वह उस शहर में है जहां से प्रकाश चमका है, और वहीं से लाभजनक ज्ञान दुनिया के सभी हिस्सों में फैला है। इस लिए वह शरई इल्म हासिल करने के लिए उत्सुक रहे जिस के द्वारा वह अल्लाह की ओर चले पूरे यक़ीन व एतेमाद के साथ। खास कर जब इल्म का हुसूल अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मस्जिद में हो। क्योंकि अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित हदीस में है, कहते हैं कि मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फ़रमाते हुये सुनाः “जो शख़्स हमारी इस मस्जिद में ख़ैर (इल्म) सीखने या सिखाने की ग़र्ज़ से दाख़िल हो वह अल्लाह के रास्ते में जिहाद करने वाले की तरह है। और जो इस के अलावा दूसरे ग़र्ज़ के लिए दाख़िल हो वह उस देखने वाले की तरह है जिस के लिए कुछ नहीं है।” {अहमदः 10816, इब्नु हिब्बानः 87}