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पाठ मुस्लिम महिला का लिबास-पोशाक
लिबास-पोशाक अल्लाह तआला की एक अज़ीम नेमत (महान अवदान) है जिस के ज़रीया उस ने लोगों पर बड़ा एहसान किया हैः इस से मनुष्य अपने शरीर को ढाकता है और गर्मी, सर्दी आदि से अपने आप को बचाता है, और साथ ही साथ यह ज़ीनत और शोभा भी है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः {يَا بَنِي آدَمَ قَدْ أَنْزَلْنَا عَلَيْكُمْ لِبَاسًا يُوَارِي سَوْآتِكُمْ وَرِيشًا وَلِبَاسُ التَّقْوَى ذَلِكَ خَيْرٌ ذَلِكَ مِنْ آيَاتِ اللَّهِ لَعَلَّهُمْ يَذَّكَّرُونَ} [الأعراف: 26]. “हे आदम संतान! हम ने तुम्हें ऐसा लिबास अता किया जो तुम्हारे शर्मगाह को ढाँके और ज़ीनत दे, और परहेज़गारी का लिबास ही अच्छा है, यह अल्लाह की निशानीयों में से है ताकि वह याद रखें।” {अल-आराफ़ः 26} लिबासों में कुछ लिबास ऐसे हैं जो नारी पुरुष दोनों के लिए आवश्यक हैं, और वह है जिस से वह निजी अंगों (शर्मगाह) को ढाँकते हैं, और कुछ लिबास ऐसे हैं जो शादी-ब्याह तथा ईद आदि जैसे अवसरों पर ज़ीनत और ख़ूबसूरती के लिए पहने जाते हैं।
महिलाओं के कपड़ों से संबंधित शरई अहकाम महान लक्ष्य प्राप्त (अज़ीम मक़ासिद हासिल) करते हैं। पस यह महिला को ख़ुसूसीयत (विशिष्टता), पुरुषों की नज़रों से सुरक्षा और अक्सर भ्रष्ट लोगों के कार्यों और शब्दों से हिफ़ाज़त प्रदान करता है। नीज़ इस्लामी लिबास महिलाओं को शांति, सुकून, गरिमा और सम्मान भी देता है। और इन तमाम चीज़ों से पहले इस्लामी पोशाक की पाबंदी से महिला अल्लाह तआला के आदेशों को बजा ला कर तथा उस के निषेधों से परहेज़ कर के उस के प्रति अपनी दासता और विनम्रता की घोषणा करती है, जिस के ज़रीया वह उस की बरकत व रहमत तथा नवाज़िश व करम की हक़दार बन जाती है।
रही बात सामुदायिक स्तर पर तो महिला की शरई पोशाक या उस का हिजाब पूरे समुदाय के लिए फ़ितनों से बचाव है, और उस के सभी सदस्यों के लिए स्थिरता और अम्न व शांति की सुरक्षा है। अतः फ़ितने जब संघटित होते हैं, तो वे समाज को उस के सभी घटकों, पुरुषों और महिलाओं सहित नष्ट कर देते हैं, और इस प्रकार परिवार का ताना-बाना, इस की स्थिरता और इस की शांति डगमगा जाती है और कभी कभी तो वह चकना चूर हो जाती है, और यह दृश्य बहुत सारे देशों में पाया तथा देखा जाता है।
मुस्लिम महिला के हिजाब की शर्तें
1- शरीर को ढाँकना
अल्लाह तआला ने फ़रमायाः {يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ قُلْ لِأَزْوَاجِكَ وَبَنَاتِكَ وَنِسَاءِ الْمُؤْمِنِينَ يُدْنِينَ عَلَيْهِنَّ مِنْ جَلَابِيبِهِنَّ ذَلِكَ أَدْنَى أَنْ يُعْرَفْنَ فَلَا يُؤْذَيْنَ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا} [الأحزاب: 59] “ऐ नबी! अपनी बीवीयों और अपनी बेटीयों से और मुसलमानों की औरतों से कह दो कि वह अपने ऊपर अपनी चादरें लटका लिया करें, इस से तुरंत उन की पहचान हो जाया करेगी फिर न कष्ट पहुँचाई जायेंगी, और अल्लाह बड़ा माफ़ करने वाला और रहम करने वाला है।” {अल-अह्ज़ाबः 59} चेहरे और हथेलियों को ढकने के संबंध में विद्वानों में मतभेद है। उन में से कुछ ने कहा: यह अनिवार्य (वाजिब) है, और उन में से कुछ ने कहा: यह वांछनीय (मुस्तहब) है, लेकिन वे इस बात पर सहमत हुए कि शरीर के बाकी सभी अंगों को ढाँकना अनिवार्य है।
2- हिजाब अपने आप में कोई शृंगार (ज़ीनत) न हो
और यह अल्लाह तआला के फ़रमानः {وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ} [النور: 31] “और वह अपनी ज़ीनत ज़ाहिर न करें।” {अन्नूरः 31} के सामान्य अर्थ में शामिल है।
3, 4- हिजाब मोटा और ढीला हो
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जहन्नमीयों की दो क़िस्में ऐसी हैं जिन को मैं ने नहीं देखा। (यह बाद में हूंगी) एक वह लोग जिन के पास गाय (बैल) की दुमों की तरह कोड़े हूँगे जिन से वह लोगों को मारेंगे। और दूसरे वह औरतें जो लिबास पहनी हूँगी (मगर) नंगी हूँगी, लोगों को अपनी तरफ़ मायल करने वाली और ख़ुद उन की तरफ़ मायल होने वाली हूँगी। उन के सर बुख़्ती ऊँट के झुके हुये कोहानों की तरह हूँगे। ऐसी औरतें जन्नत में नहीं जायेंगी (बल्कि) उस की ख़ुश्बू भी नहीं पायेंगी, हालाँकि उस की ख़ुश्बू तो इतने इतने फ़ासिले से आयेगी।” {मुस्लिमः 2128} और उसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है, उन्हों ने कहाः मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़िब्तिया (मिस्र का बना हुआ कतान का) कपड़ा पहनाया, और यह वह कपड़ा था जिसे दिह्या कल्बी ने आप को हदिया में दिया था, पस मैं ने उसे अपनी बीवी को पहना दिया। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझ से पूछाः “क्या बात है कि तुम ने वह क़िब्तिया कपड़ा नहीं पहना?” मैं ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! मैं ने उसे अपनी बीवी को पहना दिया है। तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “अपनी बीवी को उस के नीचे एक अस्तर डालने का आदेश दो. क्योंकि मुझे डर है कि वह अपनी हड्डियों के आकार का वर्णन करेगा।” {मुस्नद अहमदः 21786}
5- हिजाब धूनीयुक्त तथा सुगंधित न हो
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जो भी औरत ख़ुशबू लगा कर लोगों के सामने से गुज़रे ताकि वह उस की ख़ुशबू पायें तो वह ज़ानिया (व्यभिचारिणी) है।” {अन्नसाईः 5126}
6- हिजाब पुरुषों के कपड़ों जैसा (मर्दों के लिबास के मुशाबिह) न हो
इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है, उन्हों ने कहाः “रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने औरतों की मुशाबहत (अनुरूपता या हम शकली) इख़्तियार करने वाले मर्दों पर तथा मर्दों की मुशाबहत इख़्तियार करने वाली औरतों पर लानत (शाप) भेजी है। ” {बुख़ारीः 5885}
7- हिजाब काफ़िरा औरतों के कपड़ों जैसा (गै़र मुस्लिम ख़वातीन के लिबास के मुशाबिह) न हो
शरियत में यह बात मुसल्लम (स्थापित तथा प्रतिष्ठित) है कि मुस्लिम मर्द व ख़वातीन (पुरुषों और महिलाओं) के लिए काफ़िरों की पूजा-पाटों, उन के त्योहारों, या उन के विशिष्ट फैशनों और लिबासों में उन का अनुकरण (मुशाबहत) स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः "जो कोई किसी जाति का अनुकरण करे तो वह उन्ही में से है।" (अबू दाऊदः 4031)
8- हिजाब प्रसिद्धि (शुहरत) का लिबास न हो
क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः "जो कोई भी इस दुनिया में प्रसिद्धि का कपड़ा पहने, अल्लाह तआला उसे क़ियामत के दिन अपमान (ज़िल्लत) का कपड़ा पहनायेगा, फिर उस के भीतर आग भड़का देगा।” (इब्नु माजाः 3607) प्रसिद्धि का कपड़ा: यानी हर वह परिधान है जिसे लोगों के बीच प्रसिद्धि प्राप्त करने के उद्देश्य से पहना जाये।
पिछली शर्तें एक मुस्लिम महिला की पोशाक पर लागू होती हैं जब वह घर से बाहर निकलती है, या जब वह अपने महरम के अलावा अन्य पुरुषों की उपस्थिति में होती है। उस के लिए अपने महरम के सामने या अन्य महिलाओं से मिलते समय इन शर्तों को लागू करना अनिवार्य नहीं है। अतः इस स्तिथि में उस के लिए विशिष्ट नियंत्रणों के अधीन (मख़सूस ज़वाबित के तहत) ख़ुशबू लगाना तथा बाज़ ज़ीनत को ज़ाहिर करना जायज़ है।
तबर्रुज (बनाव सिंगार)
तबर्रुज यह है कि महिला अपनी सजावट और सौंदर्यों (ज़ीनत और हुस्न व जमाल) को अजनबीयों (परपुरुषों / ग़ैर महरमों) के सामने ज़ाहिर करें जिन का उन से छिपाना अनिवार्य है।
मुस्लिम महिला की पोशाक उस के आस-पास के लोगों को ध्यान में रखते हुये
अजनबी (गैर-महरम) के सामने उस की पोशाक।
यही वह शरई हिजाब है जिस का अल्लाह तआला ने तथा उस के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आदेश दिया है, और जिस की शर्तों का उल्लेख पहले किया जा चुका है।
मुस्लिम महिला की पोशाक अपने महरम मर्दों के सामने
मुस्लिम महिला का उन के सामने अपने पूरे शरीर का पर्दा करना वाजिब है, सिवाय उस हिस्से के जो आम तौर पर ज़ाहिर हो जाता है, जैसे कि गर्दन, बाल और पैर, साथ ही चेहरा और हथेलियाँ। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः {وَقُلْ لِلْمُؤْمِنَاتِ يَغْضُضْنَ مِنْ أَبْصَارِهِنَّ وَيَحْفَظْنَ فُرُوجَهُنَّ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا مَا ظَهَرَ مِنْهَ وَلْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلَى جُيُوبِهِنَّ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا لِبُعُولَتِهِنَّ أَوْ آبَائِهِنَّ أَوْ آبَاءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ أَبْنَائِهِنَّ أَوْ أَبْنَاءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ إِخْوَانِهِنَّ أَوْ بَنِي إِخْوَانِهِنَّ أَوْ بَنِي أَخَوَاتِهِنَّ} [النور: 31]. “और मुसलमान औरतों से कहो कि वे भी अपनी निगाह नीची रखें और अपने सतीत्व (इस्मत) की हिफ़ाज़त करें, और अपनी ज़ीनत का इज़हार न करें सिवाय उस के जो ज़ाहिर है, और अपने गरेबान पर अपनी ओढ़नियों को पूरी तरह से फैलाये रहें और अपनी ज़ीनत का इज़हार किसी के सामने न करें सिवाय अपने शौहर के या अपने पिता के या अपने ससुर के या अपने बेटों के या अपने शौहर के बेटों के या अपने भाईयों के या भतीजों के या अपने भाँजों के।” {अन्नूरः 31}
मुस्लिम महिला की पोशाक दीगर मुस्लिम औरतों के सामने
मुस्लिम महिला का उन के सामने भी -महरम मर्दों के सामने पर्दा करने की तरह- अपने पूरे शरीर का पर्दा करना वाजिब है, सिवाय उस हिस्से के जो आम तौर पर ज़ाहिर हो जाता है, जैसे कि गर्दन, बाल और पैर, साथ ही चेहरा और हथेलियाँ। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः {وَقُلْ لِلْمُؤْمِنَاتِ يَغْضُضْنَ مِنْ أَبْصَارِهِنَّ وَيَحْفَظْنَ فُرُوجَهُنَّ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا مَا ظَهَرَ مِنْهَ وَلْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلَى جُيُوبِهِنَّ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا لِبُعُولَتِهِنَّ أَوْ آبَائِهِنَّ أَوْ آبَاءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ أَبْنَائِهِنَّ أَوْ أَبْنَاءِ بُعُولَتِهِنَّ أَوْ إِخْوَانِهِنَّ أَوْ بَنِي إِخْوَانِهِنَّ أَوْ بَنِي أَخَوَاتِهِنَّ أَوْ نِسَائِهِنَّ} [النور: 31]، فقوله: (أو نسَائِهِنَّ): أي المسلمات. “और मुसलमान औरतों से कहो कि वे भी अपनी निगाह नीची रखें और अपने सतीत्व (इस्मत) की हिफ़ाज़त करें, और अपनी ज़ीनत का इज़हार न करें सिवाय उस के जो ज़ाहिर है, और अपने गरेबान पर अपनी ओढ़नियों को पूरी तरह से फैलाये रहें और अपनी ज़ीनत का इज़हार किसी के सामने न करें सिवाय अपने शौहर के या अपने पिता के या अपने ससुर के या अपने बेटों के या अपने शौहर के बेटों के या अपने भाईयों के या भतीजों के या अपने भाँजों के या अपने मेल जोल की (मुस्लिम) औरतों के।” {अन्नूरः 31}
यहूद व नसारा की महिलाओं के सामने मुस्लिम महिला की पोशाक
मुस्लिम महिला का उन के सामने भी -दीगर मुस्लिम औरतों के सामने पर्दा करने की तरह- अपने पूरे शरीर का पर्दा करना वाजिब है, सिवाय उस हिस्से के जो आम तौर पर ज़ाहिर हो जाता है, जैसे कि गर्दन, बाल और पैर। क्योंकि यहूद व नसारा की औरतें उम्महातुल् मुमिनीन (नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पाकबाज़ बीवीयों) के पास आती थीं, मगर वर्णित नहीं है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें उन से पर्दा करने का हुक्म दिया हो।
हलाल व हराम होने के एतेबार (की दृष्टिकोण) से महिला के लिबास और उस की ज़ीनत की क़िस्में
महिला के जायज़ लिबास और ज़ीनत
कपड़ों तथा अलंकरण (लिबास और ज़ीनत) के संबंध में मूल सिद्धांत यह है कि यह जायज़ है। और उस से कोई चीज़ मुस्तसना (अपवादित या पृथक) नहीं है, सिवाय इस के कि शरीयत ने उसे हराम किया हो। अतः महिला के लिए हर तरह के कपड़ों तथा सभी रंगों और प्रकार के वस्त्रों का पहनना, और खुद को सभी प्रकार के अनुमेय श्रंगार -जैसे गहने, इत्र और सौंदर्य प्रसाधनों- से सजाना जायज़ है, बशर्तेीकि इस से कोई नुकसान न हो, काफ़िर महिलाओं के मुशाबिह (अनुरूप) न हो, और इसे बनाने में निषिद्ध सामग्रियों -जैसे सूअर की चर्बी आदि- का उपयोग न किया गया हो।
मुस्तहब (वांछनीय) लिबास और ज़ीनत
इस से मुराद हर वह लिबास और ज़ीनत है जिसे शरीअत ने मुस्तहब क़रार दिया है। इसी तरह इस में हर वह वस्त्र तथा शृंगार भी शामिल है जिस का उपयोग महिला अपने पति को खुश करने और उस से प्यार व महब्बत के लिए करती है, बशर्तेीकि यह निषिद्ध न हो।
हराम लिबास और ज़ीनत
इस से मुराद हर वह लिबास और ज़ीनत है जिसे शरीअत ने हराम किया तथा उस से सतर्क किया है, चाहे शरीअत ने उस के हराम होने पर स्पष्टिकरण दिया हो, या यह कि वह उन शरई क़वानीन तथा नियमों का विपरीत हो जिन की पाबंदी करने का शरीअत ने हुक्म दिया हो -जैसे यहूद व नसारा की मुख़ालफ़त (विरोधिता), और मर्दों की अनुरूपता इख़्तियार करने की मुमानअत (निषिद्धता) इत्यादि।