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पाठ यौमे आख़िरत (अंतिम दिवस) पर ईमान

अंतिम दिवस वह दिवस है जिस में अल्लाह तआला लोगों को कब्रों से उठायेगा, फिर वह उन से हिसाब लेगा और उन्हें उन के कामों का बदला देगा। और उस पर ईमान रखना ईमान के रुक्नों में से एक रुक्न है। इस पाठ में आप इस दिन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें जानेंगे।

  • अंतिम दिवस के मतलब तथा उस के वुजूद की हिक्मत की जानकारी।
  • क़ियामत की बाज़ अलामतों की जानकारी प्राप्त करना।
  • अंतिम दिवस पर ईमान से जुड़ी कुछ बातों के बारे में जानकारी प्राप्त करना।

:एक और छात्र गिनें जिस ने इस पाठ को पूरा किया है

अंतिम दिवस पर ईमान रखने का अर्थः

पुख़्ता यक़ीन (दृढ़ विश्वास) रखना कि अल्लाह तआला लोगों को क़ब्रों से उठायेगा, फिर उन का हिसाब ले कर उन्हें उन के कर्मों का बदला देगा, यहाँ तक कि जन्नती जन्नत में और जहन्नमी जहन्नम में चले जायें। अंतिम दिवस पर ईमान लाना ईमान के रुक्नों में से एक रुक्न है, पस इस के बग़ैर किसी का ईमान सहीह नहीं होगा। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (وَلَـكِنَّ الْبِرَّ مَنْ آمَنَ بِاللهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ) (البقرة: 177). “बल्कि हक़ीक़त में अच्छा वह शख़्स है जो अल्लाह पर और अंतिम दिवस पर ईमान रखे।” {अलबक़राः 177}

यौमे आख़िरत (अंतिम दिवस) क्या है?

यौमे आख़िरत (अंतिम दिवस) वह दिन है जिस में लोग हिसाब किताब तथा बदले के लिए उठाये जायेंगे, और लोग जन्नत या जहन्नम में चले जायेंगे। और इस दिन को यौमे आख़िरत (अंतिम दिवस) इस लिए कहा गया कि इस के बाद कोई और दिन नहीं होगा। और क़ुरआन व हदीस में इस के दीगर बहुत सारे नाम आये हैं, मसलन यौमुल क़ियामा (क़ियामत का दिन), क्योंकि उस दिन में महान विषय समूह (बड़े बड़े उमूर) उठ खड़े हूँगे, जैसे रब्बुल आलमीन (सारे जहान के पालनहार) के लिए लोगों का उठ खड़ा होना। इसी तरह इस दिन के नामों में से साआ (क़ियामत), यौमुल फ़स्ल (फ़ैसले का दिन और यौमुद्दीन (बदले का दिन) आदि भी है।

क़ुरआने करीम ने अंतिम दिवस पर ईमान रखने पर क्यों ज़ोर दिया है?

क़ुरआने करीम ने अंतिम दिवस के महत्व को प्रदर्शित करने के लिए उस पर ईमान रखने पर ज़ोर दिया है, और हर मोड़ तथा उपलक्ष में उस की ओर चेतावनी दी है, नीज़ अरबी ज़ुबान के मुख़्तलिफ़ शैलीयों तथा पद्धतियों से उस के वाक़े (संघटित) होने को सुनिश्चित किया है, और एकाधिक स्थानों (कई जगहों) में उसे अल्लाह पर ईमान के साथ जोड़ दिया है, और इस लिए भी कि ताकि लोग उस से ग़ाफ़िल न हों, तथा ईमान और अच्छे कर्मों के साथ उस के लिए तैयार रहें।

अंतिम दिवस पर ईमान लाना अल्लाह पर तथा उस के अद्ल् व इंसाफ़ पर ईमान लाने का लाज़िमी नतीजा (आवश्यक परिणाम) है। और इस की वज़ाहत (व्यख्या) कुछ इस तरह है किः

अल्लाह तआला अन्याय-अत्याचार को स्वीकृति तथा प्रश्रय नहीं देता है। और वह ज़ालिम (अत्याचारी) को सज़ा दिये बिना तथा मज़लूम (पीड़ित) को इंसाफ़ और मुहसिन (सदाचारी) को बदला व नेकी दिये बिना नहीं छोड़ता है, और वह हर हक़दार को उस का हक़ दे के रहता है। और हम दुनियावी ज़िंदगी में देखते हैं कि ज़ालिम ज़ुल्म करते करते मर जाता है, पर उसे उस की कोई सज़ा नहीं मिलती, और मज़लूम ज़ुल्म सहते सहते अपने अधिकार से वंचित हो कर दम तोड़ देता है। तो सवाल यह है कि जब अल्लाह तआला अन्याय-अत्याचार को स्वीकृति तथा प्रश्रय ही नहीं देता है तो इस का अर्थ क्या है? इस का अर्थ यह है कि इस ज़िंदगी -जिस में हम गुज़र बसर कर रहे हैं- के अलावा एक दूसरी ज़िंदगी और दूसरा मुक़र्ररा वक़्त (निर्धारित समय) का होना ज़रूरी है जिस में सदाचारी को उस के नेक काम का बदला और दुराचारी को उस के पाप की सज़ा मिले और हर हक़दार को उस का हक़ प्राप्त हो।

क़ियामत की अलामतें

अंतिम दिवस पर ईमान के ज़िम्न में (अंतर्गत) है क़ियामत की अलामतों तथा उस के लक्षणों पर ईमान रखना। और अलामतों तथा लक्षणों से मुराद वह घटनायें (चीज़ें) हैं जो क़ियामत के दिन से पहले उस के क़रीब में वाक़े (संघटित) होने की ओर इशारा के तौर पर वाक़े हूँगी। और क़ियामत की अलामतों तथा उस के लक्षणों की दो क़िस्में हैं

1- छोटी अलामतें

और यह वह अलामतें हैं जो क़ियामत से पहले मुख़्तलिफ़ दौर में वाक़े होती रहेंगी। उन में सेः (फ़क़्र व फ़ाक़ा और ग़ुरबत व अभाव की वजह से) नंगे जिस्म वालों और नंगे पैर वालों तथा बकरी के चरवाहों का इमारतों में एक दूसरे पर फ़ख़्र करना। जैसा कि हदीसे जिब्रील में आया है किः जिब्रील अलैहिस्सलाम ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहाः मुझे क़ियामत के बारे में ख़बर दीजिये (कि वह कब आयेगी)? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः इस के बारे में जिस से प्रश्न किया गया है वह प्रश्नकारी से ज़्यादा इल्म रखने वाला नहीं (यानी मुझे तुम से अधिक ज्ञान नहीं)। उस ने कहाः अच्छा उस की कुछ निशानियाँ बयान फ़रमाइयेः आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः लौंडी अपनी मालिका को जनेगी, और यह कि तुम ऐसे लोगों को देखोगे कि जिन के जिस्म पर कपड़े, पैरों में जूतियाँ और खाने को ख़ूराक नहीं होगी तथा वह बकरीयों चरवाहे हूँगे (लेकिन फिर उन फ़क़ीरों के पास इतनी दौलत आ जायेगी कि) वह इमारतों में एक दूसरे पर फ़ख़्र करेंगे। {मुस्लिमः 8}

2- बड़ी अलामतें

और यह वह महान विषय हैं जो क़ियामत क़ायम होने के क़रीब ज़ाहिर हूँगी। और इन अलामतों की संख्या दस हैं, जैसा कि हदीस में आया है। हुज़ैफ़ा बिन असीद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, उन्हों ने कहाः नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हम पर बर आमद हुये (ऊपर से हमारी ओर झाँका) इस हाल में कि हम आपस में बातें कर रहे थे। तो आप ने पूछाः क्या बातें कर रहे हो। उन्हों ने जवाब दियाः हम क़ियामत की चर्चा (का ज़िक्र) कर रहे थे। आप ने फ़रमायाः “क़ियामत क़ायम नहीं होगी यहाँ तक कि तुम उस से पहले दस निशानीयाँ देख लो, फिर आप ने ज़िक्र करते हुये फ़रमायाः धूआँ, दज्जाल, जानवर, पच्छिम से सूरज का निकलना, ईसा बिन मरयम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का उतरना, याजूज व माजूज, तीन धंसः एक पूरब में, दूसरा पच्छिम में, तीसरा अरब द्वीप (जज़ीरा) में, और आख़िर में यमन से एक आग निकलेगी जो लोगों को हाँकती हुई उन की महशर तक ले जायेगी।” {मुस्लिमः 2901}

अंतिम दिवस पर ईमान किन विषयों को शामिल है?

मुस्लिम का अंतिम दिवस पर ईमान चंद विषयों को शामिल है, उन में सेः

1- बा‘स व हश्र (पुनर्जिवित तथा एकत्रित किये जाने) पर ईमानः

अर्थात मुर्दों के जिस्मों में रूहें (आत्मायें) वापस लौटा कर उन्हें ज़िंदा कर के उन की क़ब्रों से उठाया जायेगा, और वह विश्व-जहान के प्रभु के सामने खड़े हूँगे, फिर उन्हें पहली पैदाइश की तरह नंगे बदन और नंगे पैर एक मकान में एकत्रित तथा जमा किया जायेगा। बा‘स (पुनर्जन्म) पर ईमान उन विषयों में से है जिस पर क़ुरआन व हदीस तथा विवेक-बुद्धि और शुद्ध प्रकृति (अक़्ल और फ़ितरते सलीमा) दलालत करती हैं। अतः निश्चित तौर पर हम ईमान रखेंगे कि अल्लाह तआला मुर्दों को उन के जिस्म में रूह वापस डाल कर उन्हें ज़िंदा कर के उठायेगा और वह विश्व-जहान के प्रभु के सामने खड़े हूँगे।

अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (ثُمَّ إِنَّكُمْ بَعْدَ ذَلِكَ لَمَيِّتُونَ • ثُمَّ إِنَّكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ تُبْعَثُون) (المؤمنون:15-16) “इस के बाद फिर तुम सब यक़ीनन मर जाने वाले हो। फिर क़ियामत के दिन बिला शुबह (निःसंदेह) तुम सब उठाये जाओगे।” {अलमुमिनूनः 15-16} और तमाम आसमानी किताबें इस पर मुत्तहिद व मुत्तफ़िक़ (एकमत) हैं। नीज़ हिक्मत का भी यही तक़ाज़ा है कि अल्लाह तआला इस सृष्टि के लिए एक निर्धारित समय फिक्स करे जिस में हर एक को रसूलों की ज़ुबानी अर्पित दायित्व पर बदला दे। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (أَفَحَسِبْتُمْ أَنَّمَا خَلَقْنَاكُمْ عَبَثًا وَأَنَّكُمْ إِلَيْنَا لَا تُرْجَعُون) (المؤمنون: 115) “क्या तुम यह गुमान किये हुये हो कि हम ने तुम्हें यूँ ही बेकार पैदा किया है और यह कि तुम हमारी तरफ़ लौटाये ही न जाओगे।” {अलमुमिनूनः 115}

2- हिसाब किताब और मीज़ान (तराज़ू) पर ईमानः

अल्लाह तआला सृष्टिकुल से उन के उन आमाल का हिसाब लेगा जो उन्हों ने दुनियावी ज़िंदगी में अंजाम दिया। पस जो तौहीद वालों (एकेश्वरवादीयों) तथा अल्लाह और उस के रसूल की इताअत व पैरवी करने वालों (आज्ञाकारीयों) में से होगा तो उस का हिसाब आसान होगा। और जो मुशरिकों और नाफ़रमानों (अनेकेश्वरवादीयों तथा अवज्ञाकारीयों) में से होगा तो उस का हिसाब कठिन होगा।

और अज़ीम मीज़ान (विशाल तराज़ू) में आमाल तौले जायेंगे। नेकीयाँ एक पलड़े में तथा बदीयाँ दूसरे पलड़े में रखी जायेंगी। पस जिस की नेकीयों का पलड़ा भारी होगा वह जन्नती (स्वर्गवासी) होगा, और जिस की बदीयों का पलड़ा भारी होगा वह जहन्नमी (नर्कवासी) होगा। और तेरा रब किसी पर ज़ुल्म नहीं करेगा। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (وَنَضَعُ الْمَوَازِينَ الْقِسْطَ لِيَوْمِ الْقِيَامَةِ فَلَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا وَإِنْ كَانَ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِنْ خَرْدَلٍ أَتَيْنَا بِهَا وَكَفَى بِنَا حَاسِبِين) (الأنبياء: 47) “और क़ियामत के दिन हम (लोगों के आमाल तौलने के लिए) इंसाफ़ का मीज़ान क़ायम करेंगे, फिर किसी पर कुछ भी ज़ुल्म न किया जायेगा, और अगर एक राई के दाने के बराबर भी अमल होगा हम उसे ला हाज़िर करेंगे और हम काफ़ी हैं हिसाब करने वाले।” {अल्अम्बियाः 47}

3- जन्नत और जहन्नम (स्वर्ग तथा नर्क)

जन्नत दाइमी नेमतों (सदा सुखसामग्री) का घर है। अल्लाह तआला ने उसे अपने मुमिन, मुत्तक़ी तथा आज्ञाकारी बंदों के लिए तैयार किया है। उस में नफ़्स की चाहत के मुताबिक़ आँखों को ठंड करने वाली हर तरह की पसंदीदा तथा दाइमी नेमतें हैं। अल्लाह तआला ने अपने बंदों को आज्ञाकारिता की ओर तथा उस जन्नत की ओर जिस की चौड़ाई आसमानों और ज़मीन के बराबर है जल्दी करने की तरग़ीब दिलाते हुये फ़रमायाः (وَسَارِعُوا إِلَى مَغْفِرَةٍ مِنْ رَبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمَوَاتُ وَالْأَرْضُ أُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِين) (آل عمران: 133) “और अपने रब की बख़शिश की तरफ़ और उस जन्नत की तरफ़ दौड़ो जिस की चौड़ाई आसमानों और ज़मीन के बराबर है, जो परहेज़गारों के लिए तैयार की गई है।” {आलि इमरानः 133}

और जहन्नम दाइमी अज़ाब का घर है, अल्लाह तआला ने उसे अपने साथ कुफ़्र करने वाले काफ़िरों तथा रसूलों की नाफ़रमानी करने वाले लोगों के लिए तैयार किया है। उस में तरह तरह के ऐसे दर्दनाक अज़ाब तथा भयावह प्रकोप हैं जिन का खटका तक दिल में नहीं आया है। अल्लाह तआला ने काफ़िरों के लिए तैयार कर्दा (प्रस्तुतकृत) आग से अपने बंदों को डराते हुये फ़रमायाः (فَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِي وَقُودُهَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ أُعِدَّتْ لِلْكَافِرِين) (البقرة: 24) “पस उस आग से बचो जिस का ईंधन इंसान और पत्थर हैं, जो काफ़िरों के लिए तै.र की गई है।” {अलबक़राः 24}

ऐ अल्लाह! हम तुझ से जन्नत का तथा जन्नत से क़रीब कर देने वाले क़ौल व अमल (कथनी व करनी) का सवाल करते हैं। और जहन्नम से तथा जहन्नम से क़रीब कर देने वाले क़ौल व अमल से तेरी पनाह चाहते हैं।

4- क़ब्र का अज़ाब और उस की सुख शांतिः

हमारा ईमान है कि मौत सत्य है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (قُلْ يَتَوَفَّاكُمْ مَلَكُ الْمَوْتِ الَّذِي وُكِّلَ بِكُمْ ثُمَّ إِلَى رَبِّكُمْ تُرْجَعُون) (السجدة: 11) “कह दीजिये कि तुम्हें मौत का फ़रिश्ता वफ़ात देगा जो तुम पर मुक़र्रर किया गया है, फिर तुम सब अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाये जाओगे।” {अस्सज्दाः 11} और मृत्यु एक असंदिग्ध प्रत्यक्ष विषय है (मौत एक मुशाहद अम्र है जिस में कोई शक नहीं है)। नीज़ हमारा ईमान है कि जिस भी कारण से किसी की मौत हो या वह क़त्ल कर दिया जाये, उस की मौत मुक़र्ररा वक़्त (निर्धारित समय) पर होती है, ऐसा नहीं कि उस की उम्र में से कुछ घटा दिया जाता है। क्योंकि अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (فَإِذَا جَاءَ أَجَلُهُمْ لَا يَسْتَأْخِرُونَ سَاعَةً وَلَا يَسْتَقْدِمُون) (الأعراف: 34) “पस जब उन का मुक़र्ररा वक़्त आ जायेगा तब न एक लम्हा (क्षण) पीछे हट सकेंगे और न आगे बढ़ सकेंगे।” {अलआराफ़ः 34} और यह कि जिस की मौत हो जाती है तो उस की क़ियामत शुरू हो जाती है और वह दारे आख़िरत (अंतिम घर) की तरफ़ मुंतक़िल हो जाता है।

क़ुरआने करीम की मुख़्तलिफ़ आयतों और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बहुत सारी हदीसों से काफ़िरों तथा नाफ़रमानों के लिए क़ब्र के अज़ाब का और मुमिनों तथा सदाचारीयों के लिए उस की सुख शांति का सुबूत (प्रमाण) मिलता है। अतः हम उस पर ईमान रखेंगे लेकिन उस की कैफ़ियत व स्थिति के संबंध में ग़ौर व ख़ौज़ (नुक्ता चीनी) नहीं करेंगे। क्योंकि उस की कैफ़ियत और हक़ीक़त की जानकारी अक़्ल की क़ुदरत व क्षमता से बाहर है, इस लिए कि उस का संबंध जन्नत व जहन्नम की तरह अदृश्य विश्व (आलमे ग़ैब) से है, दृश्य विश्व (आलमे मुशाहदा) से नहीं। और (हक़ीक़त यह है कि) अनुमान करने, परिणाम निकालने तथा विधान देने पर अक़्ल की क़ुदरत व क्षमता केवल उन्ही चीज़ों में है, इस दुनिया में जिन की नज़ीर और क़ायदा क़ानून मौजूद (सदृश तथा नियम नीति उपलब्ध) हो।

इसी तरह क़ब्र की अंदरूनी हालतें उन ग़ैबी उमूर (अदृश्य विषयों) में से है जिन का हिस्स के ज़रीया इदराक (इंद्रीय द्वारा बोध) करना मुमकिन नहीं है। क्योंकि अगर हिस्स के ज़रीया इदराक करना मुमकिन होता तो ग़ैब पर ईमान का फ़ायदा फ़ौत हो जाता, तक्लीफ़ (कर्तव्य पालन) की हिक्मत ग़ायब नज़र आती और लोग मुर्दों को दफ़न करना छोड़ देते। जैसा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “(अगर मुझे इस बात का डर न होता कि) तुम लोग एक दूसरे को दफ़न करना छोड़ दोगे तो मैं अल्लाह से दुआ करता कि वह तुम्हें क़ब्र के अज़ाब में से वह चीज़ सुनाये जो मैं सुनता हूँ।” {मुस्लिमः 2868, नसाईः 2058} और जब यह हिक्मत जानवरों में नापैद (ग़ाइब) है तो वह उसे सुनते तथा अनुभव करते हैं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “बेशक वे (पापी लोग) ऐसा अज़ाब दिये जाते हैं जिसे जानवर सुनते हैं।” {बुख़ारीः 6366, मुस्लिमः 586}

बा‘स (पुनर्जिवित किये जाने) पर क़ुरआन की दलीलें तथा प्रमाणः

-बा‘स (पुनर्जिवित किये जाने) पर क़ुरआने करीम की बहुत सारी दलीलें हैं, उन में सेः

बेशक अल्लाह तआला ने इंसानों को पहली बार पैदा फ़रमाया। और पहली बार पैदा करने पर क़ुदरत रखने वाला उस को लौटाने (दोबारा पैदा करने) से आजिज़ नहीं हो सकता। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (وَهُوَ الَّذِي يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُه) (الروم: 27) “और वही है जो पहली बार मख़लूक़ को पैदा करता है, फिर उसे दोबारा पैदा करेगा।” {अर्रूमः 27} और अल्लाह तआला ने बोसीदा (गली सड़ी) हड्डीयों को ज़िंदा किये जाने का इंकार करने वाले पर रद (खंडन) करने का हुक्म देते हुये फ़रमायाः (قُلْ يُحْيِيهَا الَّذِي أَنْشَأَهَا أَوَّلَ مَرَّةٍ وَهُوَ بِكُلِّ خَلْقٍ عَلِيمٌ) (يس: 79) “आप जवाब दीजिये कि उन्हें वही ज़िंदा करेगा जिस ने उन्हें पहली बार पैदा किया है, और वह सब तरह की पैदाइश का बख़ूबी जानने वाला है।” {यासीनः 79}

ज़मीन मुर्दा और ख़ुश्क व बंजर हो जाती है, उस में हरे भरे पेड़ पौदे नहीं होते हैं। पस जब उस पर बारिश बरसती है तो वह फिर हरियाली के साथ ज़िंदा हो कर उभरती है जिस में हर क़िस्म की रौनक़दार नबातात होती हैं। और जो ज़ात ज़मीन को उस की मौत के बाद ज़िंदा करने पर क़ादिर (सक्षम) है, वह मुर्दों को ज़िंदा करने पर क़ादिर है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (وَنَزَّلْنَا مِنَ السَّمَاءِ مَاءً مُبَارَكًا فَأَنْبَتْنَا بِهِ جَنَّاتٍ وَحَبَّ الْحَصِيدِ • وَالنَّخْلَ بَاسِقَاتٍ لَهَا طَلْعٌ نَضِيدٌ • رِزْقًا لِلْعِبَادِ وَأَحْيَيْنَا بِهِ بَلْدَةً مَيْتًا كَذَلِكَ الْخُرُوجُ) (ق: 9-11) “और हम ने आसमान से बाबरकत पानी बरसाया और उस से बाग़ात तथा कटने वाले खेत के ग़ल्ले पैदा किये। और खजूरों के बुलंद व बाला दरख़्त जिन के ख़ोशे तह बतह हैं। बंदों की रोज़ी के लिए, और हम ने पानी से मुर्दा शहर को ज़िंदा कर दिया, इसी तरह (क़ब्रों से) निकलना है।” {क़ाफ़ः 9-11}

हर अक़्लमंद जानता है कि जो महान तथा विशाल चीज़ों के करने पर सक्षम है वह कम तर तथा छोटी मोटी चीज़ों के करने अत्याधिक सक्षम (बहुत ज़्यादा क़ादिर) है। और अल्लाह तआला ने विशाल आकाश, प्रशस्त पृथ्वी तथा महाशून्य को पहली बार अद्भूत अंदाज़ में पैदा फ़रमाया, तो वह हड्डीयों को बोसीदा होने के बाद दोबारा ज़िंदा करने पर ज़्यादा क़ादिर है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (أَوَلَيْسَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِقَادِرٍ عَلَى أَنْ يَخْلُقَ مِثْلَهُمْ بَلَى وَهُوَ الْخَلَّاقُ الْعَلِيم) (يس: 81) “जिस ने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया है क्या वह इन जैसों (इंसानों जैसों) के पैदा करने पर क़ादिर नहीं? बेशक क़ादिर है, और वही तो पैदा करने वाला जानने वाला है।” {यासीनः 81}

अंतिम दिवस पर ईमान रखने के फ़ायदे और फलः

1- अंतिम दिवस पर ईमान रखने का मुस्लिम की रहनुमाई, उस के नज़्म व नस्क़ (सुशृंखलता), उस के नेक अमल की पाबंदी करने तथा अल्लाह तआला से डरने में, नीज़ अनानीयत और रिया (अहंकार तथा दिखावा) से दूर रहने में बड़ा ज़बरदस्त असर (प्रभाव) है। और यही सबब है कि बहुत से मौक़े (अवसरों) पर अंतिम दिवस पर ईमान और नेक अमल संयुक्त उल्लेख (एक साथ ज़िक्र) किया गया है। जैसे कि अल्लाह तआला का यह फ़रमानः إِنَّمَا يَعْمُرُ مَسَاجِدَ اللَّهِ مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ. [التوبة: 18] “अल्लाह की मस्जिदों को आबाद करना तो उन के हिस्से में है जो अल्लाह पर और अंतिम दिवस पर ईमान रखते हूँ।” {अत्तौबाः 18} और यह फ़रमानः وَالَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ يُؤْمِنُونَ بِهِ ۖ وَهُمْ عَلَىٰ صَلَاتِهِمْ يُحَافِظُونَ [الأنعام: 92]. “और जो आख़िरत पर ईमान रखते हैं ऐसे लोग उस पर ईमान ले आते हैं और वह अपनी नमाज़ों की (भी) हिफ़ाज़त यानी पाबंदी करते हैं।” {अलअंआमः 92}

2- दुनियावी उमूर और उस के साज़ व सामान (सांसारिक विषयों तथा उस के उपकरणों) में मगन लोगों को तथा अल्लाह के तक़र्रुब के हुसूल (निकटता की प्राप्ति) के लिए इताअत व फरमा बर्दारी में मुक़ाबला (प्रतियोगिता) करने से ग़ाफ़िलों तथा अचेतों को सचेत करना। ताकि वह इताअत व फ़रमा बर्दारी के ज़रीया ज़िंदगी की हक़ीक़त को पहचाने तथा जान ले कि ज़िंदगी बहुत मुख़्तसर है और आख़िरत ही सदा ठहरने और हमेशा रहने का घर है। और जब अल्लाह तआला ने क़ुरआने करीम में अपने रसूलों की प्रशंसा की और उन के कर्मों का ज़िक्र फ़रमाया, तो उन की प्रशंसा उस सबब से की जो उन को सत्कर्मों और फ़ज़ीलत वाले आमाल के करने पर उभारता था। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः {إِنَّا أَخْلَصْنَاهُمْ بِخَالِصَةٍ ذِكْرَى الدَّار} (ص: 46) “हम ने उन्हें एक ख़ास बात यानी आख़िरत की याद के साथ मख़सूस (निर्दिष्ट) कर दिया था।” {स्वादः 46} अर्थात उन के इन फ़ज़ीलत पूर्ण कर्मों के करने का सबब आख़िरत की याद है जिस ने उन को इन अमलों के करने तथा इन अवस्थानों पर जमे रहने पर उभारा।

और जब कुछ मुसलमान अल्लाह और उस के रसूल का हुक्म बजा लाने से सुस्त पड़ गये, तो अल्लाह ने उन को चेतावनी देते हुये फ़रमायाः {أَرَضِيتُمْ بِالْحَيَاةِ الدُّنْيَا مِنَ الْآَخِرَةِ فَمَا مَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا فِي الْآَخِرَةِ إِلَّا قَلِيل} (التوبة: 38) “क्या तुम आख़िरत के बदले दुनिया ही की ज़िंदेगानी पर ख़ुश हो गये हो, सुनो! दुनिया की ज़िंदगी तो आख़िरत के मुक़ाबले में बहुत थोड़ी है।” {अत्तौबाः 38} पस जब इंसान अंतिम दिवस पर ईमान रखे, तो उसे यक़ीन हो जायेगा कि दुनिया की तमाम नेमतों (सुख सामग्रीयों) का तुलना आख़िरत की एक नेमत के साथ नहीं किया जा सकता। और दूसरी तरफ़ (या यूँ कहें कि) अज़ाब में उस की उम्र से एक पल के बराबर भी नहीं हो सकता। और -अल्लाह के रास्ते में- दुनिया के सारे अज़ाब का तुलना आख़िरत के एक अज़ाब के साथ नहीं किया जा सकता। और दूसरी तरफ़ नेमत में उस की उम्र से एक पल के बराबर भी नहीं हो सकता।

3- सुकून व इत्मीनान (तुष्टि व तृप्ति) कि इंसान अपना भाग (ज़रूर) पाने वाला है। पस अगर उस से दुनियावी ज़िंदेगी के साज़ व सामान में से कुछ फ़ौत हो जाये तो मायूस (निराश) न हो और दुख दर्द के कारण अपने आप को क़त्ल (आत्म हत्या) न करे, बल्कि मेहनत (परिश्रम) करे और यक़ीन रखे कि अल्लाह तआला नेकी करने वालों का अज्र बर्बाद नहीं करता। और अगर उस से ज़र्रा बराबर कोई चीज़ ज़ुल्म से या धोके से ले ली गई तो वह उसे क़ियामत के दिन सख़्त ज़रूरत के वक़्त ज़रूर पायेगा। फिर वह शख़्स कैसे ग़मगीन हो सकता है जिस ने जान लिया कि उस का हिस्सा कठिन घड़ी में निश्चित रूप से उसे आ कर रहेगा। इसी तरह वह व्यक्ति भी कैसे दुखी तथा चिंतित हो सकता है जो जानता है कि उस के दरमियान और उस के मद्दे मुक़ाबिल (प्रतिद्वंद्वि) के दरमियान हाकिमों का हाकिम अल्लाह सुब्हानहू व तआला फ़ैसला करेगा।

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