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पाठ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत एक वह्य है जिसे अल्लाह ने अपने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर नाज़िल की। और यह अल्लाह की पवित्र पुस्तक क़ुरआन के साथ इस्लाम धर्म की नींव और स्रोत है, और यह दोनों एक साथ उस तरह अविभाज्य (लाज़िम मलज़ूम) हैं, जिस तरह अविभाज्य हैं इस बात की गवाही देना कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य माबूद नहीं है और इस बात की गवाही देना कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं। और जो सुन्नत पर ईमान न लाये क़ुरआन पर उस का ईमान नहीं।
सुन्नत की तारीफ़
सुन्नते नबवी यह हैः कथन, कर्म, समर्थन, सृष्टिगत गुण या नैतिक गुण में से जिस की निसबत नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर की जाये।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत का मक़ाम व मर्तबा
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत का इस्लाम में एक महान स्थान है, और निम्नलिखित बातें इस के मक़ाम व मर्तबा को बयान करती हैंः
1. यह शरीअत साज़ी का दूसरा स्रोत (मसदर) है
सुन्नत क़ुरआने करीम के बाद दीन का दूसरा मसदर है। मिक़दाम बिन मादी करिब अल-किंदी से रिवायत है, उन्हों ने कहाः ररसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “सुनो! मुझे किताब दी गई है और उस के साथ उसी के मिस्ल एक और चीज़ (यानी सुन्नत)। सुनो! मुझे क़ुरआन दिया गया है और उस के साथ उसी के मिस्ल एक और चीज़ (यानी सुन्नत)। क़रीब है कि एक आसूदा आदमी अपने तख़्त पर टेक लगाये हुये कहेः इस क़ुरआन को लाज़िम पकड़ो। जो कुछ तुम इस में हलाल पाओ उसी को हलाल समझो, और जो कुछ हराम पाओ उसी को हराम समझो।” {मुसनद अहमदः 17174}
2- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत अल्लाह तआला की तरफ़ से वह्य है
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत अल्लाह तआला की तरफ़ से अपने रसूल पर वह्य है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः “और न वह अपनी ख़ाहिश ले बोलते हैं, वह तो केवल वह्य है जो उतारी जाती है, उसे पूरी ताक़त वाले फ़रिश्ते ने सिखाया है।” {अन्नज्मः 3-5}
3- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत क़ुरआन की तफ़सीर है
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत में क़ुरआन की तफ़सीर है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः “और हम ने आप की तरफ़ यह ज़िक्र (क़ुरआन) उतारा, ताकि आप लोगों के लिए खोल कर बयान कर दें जो कुछ उन की तरफ़ उतारा गया है और ताकि वह ग़ौर व फ़िक्र करें।” {अन्नह्लः 44}
बहुत से मामलों में क़ुरआने करीम की आयतें मुजमल अहकाम (संक्षिप्त विधानों) के साथ आई हैं। चुनांचि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़ुरआने करीम में मज़कूर बातों की अपने कथन या अपने व्यवहारिक अनुप्रयोग द्वारा व्याख्या विश्लेषण की है। मिसाल के तौर पर अल्लाह तआला के इस फ़रमानः ﴿وَأَقِيمُوا الصَّلاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ﴾ [النور: 56] “और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा करो और रसूल का हुक्म मानो ताकि तुम रहम किये जाओ।” में नमाज़ क़ायम करने तथा ज़कात अदा करने का संक्षिप्त रूप से हुक्म दिया गया है। और उस की तफ़सीर तथा व्याख्या विश्लेषण सुन्नत में आई है। जैसे कि सुन्नत ने पाँचों नमाज़ के औक़ात और उन की कैफ़ियत तथा बाक़ी अहकामात बयान किये हैं। और इसी तरह ज़कात के अहकामात की तफ़ासील भी सुन्नत ने ही बयान किया है।
सुन्नते नबवी उस ज़िक्र में शामिल है अल्लाह तआला ने जिस की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी ली है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः “बेशक हम ने ही यह ज़िक्र उतारा है और बेशक हम ही ज़रूर इस की हिफ़ाज़त करने वाले हैं।” {अल-हिज्रः 9} और ज़िक्र एक ऐसा नाम है जो हर उस चीज़ पर लागू होता है जिसे अल्लाह ने अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर नाज़िल किया है, चाहे कुरआन हो या सुन्नत।
इस संरक्षण की अभिव्यक्तियों (हिफ़ाज़त के मज़ाहिर) में से एक यह है कि अल्लाह तआला ने सुन्नते नबवी के लिए विद्वानों को तैयार किया है, जिन्हों ने सुन्नत को इकट्ठा करने और इसे रिकॉर्ड (तदवीन) करने के लिए और इस की रिवायत और वर्णना को नियंत्रित करने वाले नियमों को निर्धारित करने के लिए एक महान प्रयास किया है। और उन्हों ने झूठ, भ्रम तथा त्रुटियों को छाँट कर अलग किया है जो उस में प्रवेश कर गये थे। और उन्हों ने इसे बहुत सठिक रूप से नियंत्रित किया है, बहुत अच्छी तरह से इस की हिफ़ाज़त की है, और इस के रावीयों तथा कथाकारों (वर्णना तथा रिवायत करने वालों) की स्थितियों की जांच की है।
सुन्नत को इन कथाकारों और विद्वानों के माध्यम से अल्लाह तआला ने संरक्षित करने की गारंटी दी है, जिन्हें उस ने अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत को संरक्षित करने के लिए अधीन किया है।
महान कुरआन के बाद सुन्नत शरीअत साज़ी का दूसरा स्रोत (मसदर) है, और अल्लाह तआला का दीन क़ुरआन और सुन्नत को साथ लिए बिना पूरा नहीं हो सकता है।
सुन्नत शरई अहकाम को निकालने में एक बुनयादी स्रोत है, और अक़ीदे के मसायल तथा शरई अहकामात के मामलों में इस के अनुसार अमल करना वाजिब है।
सुन्नत कभी महान कुरआन के अहकाम की व्याख्या करने के लिए आती है, तो कभी अहकाम को शरीअत का स्वतंत्र रूप देने के लिए आती है, पस वह हलाल को हलाल करने तथा हराम को हराम करने में कुरआन की तरह है।
कुरआने करीम की दलीलें और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसें सुन्नत की प्रामाणिकता और इस्लामी शरीअत में इस के स्थान को साबित करने पर दलालत करती हैं। चुनांचि बहुत सी आयतें तथा विभिन्न हदीसें सुन्नत को थामने, उस से हुज्जत पकड़ने और मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आज्ञाकारिता की आवश्यकता का आदेश देती हैं। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः ﴿ وَمَا آتَاكُمْ الرَّسُولُ فَخُذُوهُ وَمَا نَهَاكُمْ عَنْهُ فَانْتَهُوا ﴾ [الحشر: 7]. “और रसूल तुम्हें जो कुछ दे ले लो और जिस से रोके रुक जाओ।” {अल-हश्रः 7}
मिक़दाम बिन मादी करिब अल-किंदी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “क़रीब है कि कोई आदमी अपने आरास्ता तख़्त पर टेक लगाये बैठा हो और उस से मेरी कोई हदीस बयान की जाये तो वह कहेः हमारे और तुम्हारे दरमियान अल्लाह की किताब काफ़ी है। हम उस में जो चीज़ हलाल पायेंगे उसी को हलाल समझेंगे, और जो चीज़ हराम पायेंगे उसी को हराम जानेंगे। तो सुन लो! जिसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हराम क़रार दिया है वह वैसे ही है जैसे अल्लाह ने हराम क़रार दिया है।” {इब्नु माजाः 12}
अल्लाह तआला ने अपने बंदों पर अपने रसूल की आज्ञाकारिता उन के अक़वाल, अफ़आल तथा अहवाल (कथनों, कर्मों और स्तिथियों) में और उन की सुन्नत की इत्तिबा करने को वाजिब क़रार दिया है। इरशाद हैः ﴿قُلْ إِنْ كُنْتُمْ تُحِبُّونَ اللَّهَ فَاتَّبِعُونِي يُحْبِبْكُمُ اللَّهُ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ﴾ [آل عمران: ٣١]. “कह दीजिये कि अगर तुम अल्लाह से महब्बत रखते हो तो मेरी ताबेदारी करो, ख़ुद अल्लाह तुम से महब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाह माफ़ फ़रमा देगा और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।” {आले इमरानः 31} और दूसरी जगह इरशाद फ़रमायाः ﴿وَاتَّبِعُوهُ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ﴾ [الأعراف :158 ]. “और उन की इत्तिबा करो ताकि तुम हिदायत पाओ।” {अल-आराफ़ः 158}
इरबाज़ बिन सारिया रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “पस तुम मेरी सुन्नत और हिदायत याफ़्ता ख़ुलफ़ाये राशेदीन के तरीक़ा को लाज़िम पकड़ना, तुम उस से चिमट जाना, और उसे दांतों से मज़बूत पकड़ लेना, और दीन में निकाली गई नई बातों से बचते रहना, इस लिए कि हर नई बात बिदअत है, और हर बिदअत गुमराही है।” {अबू दाऊदः 4607}
इत्तिबा यानी उस चीज़ को लाज़िम पकड़ना जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा या किया हो, और आदेशों को पालन करने, निषेधों से बचने और दीन को लागू करने तथा उस पर अमल करने में आप के तौर तरीक़े पर चलना।
इत्तिबा वाजिब चीज़ों में वाजिब है और मुस्तहब चीज़ों में मुस्तहब (वांछनीय) है।
सुन्नत की इत्तिबा व पैरवी की कई फ़ज़ीलतें तथा फ़ायदे हैं, उन में सेः
सुन्नत की इत्तिबा करने और उस को लाज़िम पकड़ने में उन फ़िर्क़ों और जमाअतों की इत्तिब से मुक्ति है जिन के मानने वालों को नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आग की धमकी दी है। अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है, उन्हों ने कहाः रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “मेरी उम्मत के साथ हू बहू वही सूरते हाल पेश आयेगी जो बनी इसराईल के साथ पेश आ चुकी है, यहाँ तक कि उन में से किसी ने अगर अपनी माँ के साथ खुल्लम खुल्ला ज़िना किया होगा तो मेरी उम्मत में भी ऐसा शख़्स होगा जो इस घिनावने काम का करने वाला होगा। बनी इसराईल बहत्तर फ़िर्क़ों में बट गये और मेरी उम्मत तिहत्तर फ़िर्क़ों में बट जायेगी, और एक फ़िर्क़ा को छोड़ कर बाक़ी सभी जहन्नम में जायेंगे। सहाबा ने पूछाः ऐ अल्लाह के रसूल! यह कौन सी जमाअत होगी? आप ने फ़रमायाः यह वह लोग हूँगे जो मेरे और मेरे सहाबा के नक़्शे क़दम पर हूँगे।” {तिर्मिज़ीः 2641}
सुन्नत को लाज़िम पकड़ने में गुमराही से हिफ़ाज़त और हिदायत है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः ﴿وَاتَّبِعُوهُ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ﴾ [الأعراف :158 ]. “और उस की इत्तिबा और ताबेदारी करो ताकि तुम हिदायत पाओ।” {अल-आराफ़ः 158} और अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, उन्हों ने कहाः रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “मैं तुम्हारे बीच दो चीज़ें छोड़े जा रहा हूँ, उन दोनों के बाद तुम हरगिज़ गुमराह न होगेः अल्लाह की किताब और मेरी सुन्नत।” {मुस्तदरक हाकिमः 319}
नेक काम की स्वीकृति सुन्नत के मुताबिक़ होने पर निर्भरित है, पस ज़रूरी है कि वह अमल जो बंदा अंजाम दे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत के मुताबिक़ हो। आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “जो कोई ऐसा अमल करे जिस पर हमारा हुक्म नहीं है वह मरदूद (प्रत्याख्यात) है।” {मुस्लिमः 1718}
सुन्नत की इत्तिबा में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर निस्बत तथा संयोजन है, और जो सुन्नत से दूर रहे वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दूर होगा। अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, उन्हों ने कहाः तीन हज़रात (अली बिन अबू तालिब, अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस और उसमान बिन मज़ऊन रज़ियल्लाहु अन्हुम) नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पाक बीवीयों के घरों की तरफ़ आप की इबादत के मुतअल्लिक़ पूछने आये। जब उन्हें नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अमल बताया गया तो जैसे उन्हों ने उसे कम समझा और कहा कि हमारा नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से क्या मुक़ाबला! आप की तो तमाम अगली पिछली लग़ज़िशें माफ़ कर दी गई हैं। उन में से एक ने कहा कि आज से मैं हमेशा रात भर नमाज़ पढ़ा करूँगा। दूसरे ने कहा कि मैं हमेशा रोज़े से रहूँगा और कभी नाग़ा नहीं होने दूँगा। तीसरे ने कहा कि मैं औरतों से जुदाई इख़्तियार कर लूँगा और कभी निकाह नहीं करूँगा। फिर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तशरीफ़ लाये और उन से पूछाः “क्या तुम ने ही यह बातें कही हैं? सुन लो! अल्लाह तआला की क़सम! अल्लाह रब्बुल् आलमीन से मैं तुम सब से ज़्यादा डरने वाला हूँ। मैं तुम में सब से ज़्यादा परहेज़गार हूँ, लेकिन मैं अगर रोज़े रखता हूँ तो इफ़तार भी करता हूँ। नमाज़ पढ़ता हूँ (रात में) और सोता भी हूँ, और मैं औरतों से निकाह करता हूँ। मेरे तरीक़े से जिस ने बे रग़बती की वह मुझ में से नहीं है।” {बुख़ारीः 5063}
सुन्नत को लाज़िम पकड़ने में फ़ितना और दर्दनाक अज़ाब से नजात है। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः ﴿فَلْيَحْذَرِ الَّذِينَ يُخَالِفُونَ عَنْ أَمْرِهِ أَنْ تُصِيبَهُمْ فِتْنَةٌ أَوْ يُصِيبَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ ﴾ [النور: 63]. “सुनो! जो लोग रसूल के हुक्म की मुख़ालफ़त करते हैं उन्हें डरते रहना चाहिये कि कहीं उन पर कोई ज़बरदस्त आफ़त न आ पड़े या उन्हें दर्दनाक अज़ाब (न) पहुँचे।” {अन्नूरः 63}
सुन्नत की इत्तिबा और उस को लाज़िम पकड़ने में दुनिया और आख़िरत में कामयाबी तथा सआदत मंदी हासिल होगी। अल्लाह तआला ने फ़रमायाः ﴿وَمَنْ يُطِعِ اللهَ وَرَسُولَهُ وَيَخْشَ اللهَ وَيَتَّقْهِ فَأُولَئِكَ هُمُ الْفَائِزُونَ﴾ [النور: 52]. “जो भी अल्लाह की और उस के रसूल की फ़रमा बर्दारी करें और ख़ौफ़े इलाही रखें और उस के अज़ाब से डरते रहें, वही नजात पाने वाले हैं।” {अन्नूरः 52}