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पाठ सुन्नत की तदवीन (संहिताकरण) और उस की महत्वपूर्ण पुस्तकें

इस्लाम के विद्वानों ने सुन्नत को संहिताकरण (तदवीन) करने में एहतेमाम (प्रयत्न) किया, पस उन्हों ने इस के याद करने में अपनी उम्र बिता दी, इस के सहीह को इस के ज़ईफ़ से अलग किया, और इस के वर्णनकर्ताओं (रावीयों) की स्थितियों को इस तरह से स्पष्ट किया कि सभी मानव जाति के इतिहास में कोई समानता नहीं है। आप इस पाठ में सुन्नत की तदवीन का अर्थ, उस के चरणों और सुन्नत की सब से महत्वपूर्ण वर्गीकृत पुस्तकों के बारे में जानेंगे।

  • सुन्नते नबवी की तदवीन के चरणों (मराहिल) की जानकारी।
  • सुन्नते नबवी की सब से प्रमुख किताबों की जानकारी।
  • हदीस के सहीह या ज़ईफ़ होने की जानकारी तक पहुँचने का तरीक़ा।

:एक और छात्र गिनें जिस ने इस पाठ को पूरा किया है

सुन्नते नबवी की तदवीन

इस्लाम के विद्वानों ने सुन्नत को संहिताकरण (तदवीन) करने में एहतेमाम (प्रयत्न) किया, पस उन्हों ने इस के याद करने में अपनी उम्र बिता दी, इस के सहीह को इस के ज़ईफ़ से अलग किया, और इस के वर्णनकर्ताओं (रावीयों) की स्थितियों को इस तरह से स्पष्ट किया कि सभी मानव जाति के इतिहास में कोई समानता नहीं है।

सुन्नते नबवी की तदवीन का अर्थ

नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन, कर्म अथवा समर्थन में से जो वारिद (वर्णित) हुआ है, उसे लिखना, रिकार्ड रखना और किताबों और पुस्तकों में एकत्रित करना।

सुन्नत को लिपिबद्ध करने और हदीस लिखने की प्रक्रिया कई चरणों (मरहलों) से गुज़री, जो इस प्रकार है:

١
पहला मरहला तथा चरणः नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप के सहाबीयों के दौर में लेखन।
٢
दूसरा मरहलाः ताबेईन के दौर के आख़िर में तदवीन।
٣
तीसरा मरहलाः सुन्नत की रचना क्रम में व्यवस्थित पुस्तकों के रूप में करना।
٤
चौथा मरहलाः नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस को किसी और चीज़ के साथ मिलाए बिना वर्गीकृत, एकत्रित और व्यवस्थित कर के अलग करने का मरहला।

पहला मरहलाः

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप के सहाबीयों के दौर में सुन्नत का लेखन। और यह पहली सदी हिजरी में पेश आया। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शुरू इस्लाम में अपनी हदीसों को कुरआन के साथ घुल-मिल जाने के डर से लिखने से मना फ़रमाया था।

अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः “तुम लोग मुझ से न लिखो। और जिस ने मुझ से क़ुरआन के अलावा कुछ लिखा है वह उसे मिटा दे। और कोई हर्ज नहीं कि तुम मुझ से हदीस बयान करो।” {मुस्लिमः 3004}

पस नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसें सीनों में महफ़ूज़ थीं। और एक दूसरे के पास मौखिक रूप से प्रसारित हो रही थीं। फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बाज़ सहाबीयों को लिखने की अनुमति दी।

अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैंः मैं हर उस हदीस को जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सुनता याद रखने के लिए लिख लेता, तो क़ुरैश के लोगों ने मुझे लिखने से मना कर दिया, और कहाः क्या तुम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से हर सुनी हुई बात लिख लेते हो? हालाँकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बशर (इंसान) हैं, ग़ुस्से और ख़ुशी दोनों हालतों में बातें करते हैं, तो मैं ने लिखना छोड़ दिया। फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इस का ज़िक्र किया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी उँगली से अपने मुँह की तरफ़ इशारा किया और फ़रमायाः “लिखा करो, क़सम उस ज़ात की जिस के हाथ में मेरी जान है! इस से हक़ बात के सिवा कुछ नहीं निकलता।” {अबू दाऊदः 3646}

और वलीद बिन मुस्लिम की हदीस में है, वह औज़ाई से रिवायत करते हैं कि अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहाः जब अल्लाह तआला ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को मक्का फ़तह (विजय) करा दिया, तो आप लोगों के सामने खड़े हुये और अल्लाह तआला की हम्द व सना की। (अबू हुरैरा ने पूरा ख़ुत्बा ज़िक्र किया फिर कहाः) पस अबू शाह -यमन के एक सहाबी- ने खड़े हो कर कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! यह ख़ुत्बा मेरे लिए लिखवा दीजिये। चुनांचि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा किराम से फ़रमायाः “अबू शाह के लिए यह ख़ुत्बा लिख दो।” वलीद ने कहाः मैं ने औज़ाई से पूछाः इस से क्या मुराद है कि मेरे लिए इसे लिखवा दीजिये? उन्हों ने कहाः वही ख़ुत्बा मुराद है जो उन्हों ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से (मक्का में) सुना था। {बुख़ारीः 2434, मुस्लिमः 1355}

दूसरा मरहलाः

हदीस की तदवीन दूसरी शताब्दी हिजरी में ताबेईन के युग के अंत में। इस लेखन को सुन्नते नबवी की आम तदवीन की ख़ुसूसियत (सामान्य संहिताकरण की विशेषता) हासिल हुई, लेकिन इस की कोई निर्धारित तरतीब नहीं थी। और इस विषय में सब से पहले ध्यान देने वाले उमर बिन अब्दुल अजीज रहिमहुल्लाह थे। पस उन्हों ने दो इमाम इब्न शिहाब अज़्जुहरी और अबू बक्र बिन हज़्म को सुन्नत के संग्रह करने का आदेश दिया, और चारों तरफ़ लिख भेजा: "रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस देखो, उसे इकट्ठा करो और उस की हिफ़ाज़त करो, क्योंकि मुझे इल्म के ख़त्म होने और विद्वानों के जाने का डर है।”

इमाम अज़्जुहरी रहिमहुल्लाह उन के आदेश पर हदीस की तदवीन करने वाले पहले व्यक्ति थे, और यह सामान्य रूप से सुन्नत और हदीसों की तदवीन की शुरुआत थी।

तीसरा मरहलाः

सुन्नत को व्यवस्थित वर्गीकृत पुस्तकों के रूप में संकलित करना, या तो वैज्ञानिक अध्यायों की विधि पर (इल्मी अबवाब के तरीक़े पर) जैसे ईमान, इल्म, तहारत, सलात वग़ैरा, या मसानीद की विधि पर, जैसे इस प्रकार जिक्र करेंः मुसनद अबू बक्र, फिर मुसनद उमर, और इसी तरह।

इस मरहला में मुवत्ता इमाम मालिक बिन अनस रहिमहुल्लाह तसनीफ़ (वर्गीकृत) की गई। और इस मरहला में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बातों और सहाबा तथा ताबेईन की बातों और उन फ़तवे की व्यवस्था और मिश्रण की विशेषता थी।

चौथा मरहलाः

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस को सहाबा और ताबेईन की बातों से पृथक, वर्गीकृत, एकत्रितऔर व्यवस्थित का मरहला, -मगर बवक़्ते ज़रूरत बहुत ही कम मिक़दार में-। और यह मरहला तीसरी शताब्दी हिजरी की शुरुआत के साथ शुरू हुआ। और इस में सब से प्रसिद्ध लेखों में से है: मुसनद इमाम अहमद, मुसनद अल-हुमैदी वग़ैरा।

फिर हदीस की तदवीन तीसरी शताब्दी हिजरी के मध्य में तब अपने लक्ष्य तक पहुंच गई, जब इमाम अल-बुखारी ने सही अल-बुखारी और इमाम मुस्लिम ने सहीह मुस्लिम की रचना की। और सुनन् की किताबें लिखी गईंः सुनन् अबी दाऊद, सुनन् अत्तिर्मिज़ी, सुनन् अन्नसाई, सुनन इब्ने माजा, सुनन् अद्दारिमी, और अन्य प्रसिद्ध हदीस की किताबें।

सुन्नते नबवी की महत्वपूर्ण किताबें

सुन्नते नबवी की कई किताबों में से छह किताबें मशहूर हुईं: सहीह अल-बुखारी, सही मुस्लिम, सुनन अबी दाऊद, इब्न माजा, अन-नसाई और अल-तिर्मिज़ी।

इसी तरह सुन्नत की किताबों में जो मशहूर हुईं सुनन अल-दारमी, इमाम अहमद की मुसनद और इमाम मलिक की मुवत्ता हैं।

छह पुस्तकों (कुतुबे सित्ता) का परिचय

सुन्नत की सब से प्रसिद्ध पुस्तकों में से जिन्हें उम्मत ने स्वीकृति के साथ प्राप्त किया, वे छह पुस्तकें हैं, जो इस प्रकार हैं:

1. सहीह अल-बुखारी (वफ़ात 256 हिजरी)

यह उन जामे किताबों में से एक है जो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसों में से लेखक तक पहुंचने वाली हर चीज को इकट्ठा की है, अक़ीदे, इबादात, लेनदेन, ग़ज़वात, तफ़सीर और फ़ज़ाएल आदि संबंधी हैं। इमाम बुख़ारी ने इस में सिर्फ सहीह हदीसों को जमा करने का इलतिज़ाम किया है। और यह पवित्र कुरआन के बाद सब से ज़्यादा सहीह पुस्तक है।

2. सहीह मुस्लिम (वफ़ात 261 हिजरी)

यह भी जामे किताबों में से एक है, और लेखक ने इस में सहीह हदीसों को जमा करने का इलतिज़ाम किया है। लेकिन इस में सहीह की शर्तें अल-बुखारी की तुलना में हल्की हैं, चुनांचि यह अल-बुखारी की किताब के बाद दूसरी किताब है।

3. सुनन अबी दाऊद (वफ़ात 275 हिजरी)

यह सुनन् की पुस्तकों में से एक है जिसे इस के लेखकों ने न्यायशास्त्र के अध्यायों पर व्यवस्थित किया (मुअल्लिफ़ीन ने फ़िक़ह के अबवाब पर तरतीब दिया) है। और इमाम अबू दाऊद ने अपनी पुस्तक में सहीह और हसन हदीसों को जमा किया है, और ज़ईफ़ हदीस नहीं लाये मगर बहुत कम।

4. सुनन अल-तिर्मिज़ी (वफ़ात 279 हिजरी)

यह उन जामे किताबों में से एक है जो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसों में से लेखक तक पहुंचने वाली हर चीज को इकट्ठा की है, अक़ीदे, इबादात, लेनदेन, ग़ज़वात, तफ़सीर और फ़ज़ाएल आदि संबंधी हैं। इमाम तिर्मिज़ी ने इस में सिर्फ सहीह हदीसों को जमा करने का इलतिज़ाम नहीं किया है। लिहाज़ा इस में सहीह, हसन और ज़ईफ़ हदीसें हैं।

5. सुनन अन-नसाई (मृत्यु 303 हिजरी)

यह भी फ़िक़ह के अबवाब पर लिखी गई है। और इस में सहीह, हसन और ज़ईफ़ हदीसें हैं।

6. सुनन इब्न माजा (मृत्यु 273 हिजरी)

यह भी फ़िक़ह के अबवाब पर लिखी गई है। और इस में सहीह, हसन और ज़ईफ़ तथा बाज़ मरदूद ज़ईफ़ हदीसें भी हैं।

इमाम हाफ़िज़ अबूल् हज्जाज अल-मिज़्ज़ी (वफ़ात 742 हिजरी) ने कहा:

"सुन्नत की हिफ़ाज़त के लिए अल्लाह तआला ने बहुत से ऐसे विशेषज्ञों, जानकार उलमा और छान बीन करने वाले विद्वानों को तौफ़ीक़ से नवाज़ा है, जो सुन्नत से ग़ुलू करने वालों की विकृति, झूठों की चोरी और जाहिलों की व्याख्या का खंडन करते हैं। पस उन्हों ने मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में किताबें तसनीफ़ कीं, और उस की हिफ़ाज़त के लिए और उस की बरबादी के डर से कई तरह से और विभिन्न प्रकार से उस की तदवीन में महारत हासिल कीं। और तसनीफ़ (वर्गीकरण) में उन में सर्वश्रेष्ठ, संकलन में सब से अच्छा, दुरुस्तगी में सब से सहीह, ग़लती में सब से कम, फ़ायदे सब से उपयोगी, लाभ में सब से मुनासिब, बरकत में सब से अज़ीम, प्रदान करने में सब से आसान, सहमत और असहमत दोनों के नज़दीक स्वीकृति में सब से बेहतर, और हर ख़ास व आम के निकट सब से अधिक सम्मानित: सहिह अबी अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन इस्माइल अल-बुखारी, फिर "सहीह अबी अल-हुसैन मुस्लिम बिन हज्जाज अल-नैसापूरी", फिर उन के बाद अबू दाऊद सुलैमान बिन अल-अश्अस अल-सजिस्तानी की पुस्तक "अल-सुनन", फिर अबू ईसा मुहम्मद बिन ईसा अल-तिर्मिज़ी की पुस्तक "अल-जामे", फिर अबू अब्दुर्रहमान अहमद बिन शुएब अल-नसाई की पुस्तक "सुनन", फिर अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन यज़ीद की पुस्तक "सुनन" , जिसे इब्न माजा अल-क़ुज़वीनी के नाम से जाना जाता है, भले ही वह उन के स्तर तक न पहुँचे।

इन "छह पुस्तकों" में से हर एक की विशेषता है जिस से इस मैदान के लोग वाक़िफ़ हैं। ये पुस्तकें मख़लूक़ के बीच लोकप्रिय हो गईं और इस्लामी देशों में फैल गईं, और उन का महान उपयोग हुआ और उस को प्राप्त करने के लिए ज्ञान पिपासू छात्र लोग उत्सुक हुये। तहज़ीब अल-कमाल (1/147)।

सहीह और कमजोर हदीस के बीच भेद

हदीस के विशेषज्ञ और माहेरीन तथा जानकार उलमा की तरफ़ रुजू कर के एक मुसलमान हदीस का दर्जा जान सकता है। क्योंकि उन्हों ने सनद और मतन की हालतों को सामने रख कर क़बूल तथा रद के एतेबार से हदीसों का अध्ययन किया।

इस पर और भी कई लिखित और वर्गीकृत किताबें हैं। इसी तरह कई विश्वसनीय इलेक्ट्रॉनिक एप्लिकेशन और प्लेटफॉर्म हैं जो ज़ईफ़ हदीसों से सहीह हदीसों की पहचान करने में मदद करते हैं।

विश्वसनीय इलेक्ट्रॉनिक एप्लिकेशन और प्लेटफॉर्म में से जो ज़ईफ़ हदीसों से सहीह हदीसों की पहचान करने में मदद करते हैं

अद्दुरर अस्सुन्नीया वेबसाइट पर हदीस इनसाइक्लोपीडिया, जिस में सैकड़ों हजारों हदीस शामिल हैं, इन पर (पूर्व, पश्चात तथा समकालीन) मुहद्दिसीन का हुक्म मौजूद है। इस का लिंक यह है: https://dorar.net/hadith

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